Sunday, September 28, 2014

नीयत का खेल है बस!!!

कर्म और नियत 


                         हने को हम पढ़े लिखे और अच्छी तरह के सभ्य लोगों  में गिने जाते है पर हाथ में महंगा फ़ोन,बदन पर ब्रांडेड कपड़े और मुँह से अंग्रेज़ी की बरसात क्या यही काफ़ी  होता है?????? मन दुखता है जब हम में से ही कुछ पढ़े लिखे अनपढ़ लोगों  को देखता हुँ जो लोगों  को उनके पहनावे शकल और आकार से आंकते है।इन उच्च विचार वाले लोगों के लिए मेरी एक सलाह वो भी मुफ्त,जनाब अगर रंग रूप आपके हिसाब से तय होते तो सब यहाँ एक जैसे होते और फिर अपनी किसी को कोई पहचान नहीं होती।कमी हर किसी में होती है पर जरूरी नहीं उस एक कमी को उजागर करना गलत है,क्युकी ये भी सच है के कमी के साथ साथ हर इंसान में गुण भी होते है।हम खुद को बेहतर बनाने के बजाए आजकल दूसरों की बुरा देखने में ज़यदा विश्वास रखते है।  

                  ये जो बातें  में कर रहा हुँ  ये काल्पनिक नहीं है कल ही की बात है में मेट्रो में सफर कर रहा था सुबह के वक़्त जो सभी के ऑफिस जाने का समय होता है,भिड़ बाकि दिनों से कुछ जयदा थी एक आदमी जो की कपड़ों  से मज़दूर लग रहा था वो गेट के पास ही खड़ा था उसके आसपास के लोग उसे ऐसे दूर होने की कोशिश कर रहे थे जैसे कोई बॉम पड़ा हो फिर अगले स्टेशन पर एक आदमी जो अपने व्यक्तित्व से काफी सुजला और समझदार लग रहा था उसने उस मज़दूर को धक्का दिया और खुद में बड़बड़ाता चला गया के "पता नहीं कहाँ  कहाँ से आ जाते है" इन शब्दों ने उसकी छवि तोड़ दी जो मेरे मन में बनी थी।सिर्फ कपडों से भेदभाव करने वालों को ये बात नहीं भूलनी चाइये के सब बिना कपड़ो के ही इस दुनिया में आते है,खुद को बड़ा दिखाने  के चकर में लोग अपनी सोच के दायरे को छोटा करते जा रहे है। 


                        
                  किसी को देख के मुँह बनाना सिर्फ इसलिए के वो मोटी है,किसी के साथ बैठ के खाना ना खाना क्युकी वो तुम्हारी जात  का नहीं.…………उस लड़की का सोचो जो दिनभर आईने के सामने बैठ खुद को निहारती है सिर्फ इसलिए की लोग उसे बदसूरत कहते है और वो उस एक की तलाश में है जो उसमे खूबसूरती देखें।उस आदमी का सोचो जो कद में बोना है पर ऊँचे सोल वाले जुत्ते पहनता है के कोई उसका मजाक न उड़ाए,एक आदमी जो हकलाता है बोलने में भी डरता क्युकी आजतक जब भी उसने अपनी बात बोलने की कोशिश की है उसका मजाक उड़ाया गया है।मेरे दोस्तों किसी को निराश करना बहुत आसान है पर किसी में एक हिम्मत जगाना और उसे आशावादी बनाना उसे बड़ी  बात है,आपके छोटे छोटे प्रयास किसी की जिंदगी में बड़े बड़े परिवर्तन ला सकती है।  

         बाकि अब थोड़ी मन की शांति के लिए हम जा रहे है अपने उत्तराखंड तो आपको अब मिलेंगे अगले हफ्ते तब तक मुस्कुराते रहे और खुशी  बाँटते रहे.....बाकि रब राखा 

:-मनीष पुंडीर 



Wednesday, September 24, 2014

पल पल मरना।

अहसास....... 

                                               ये कोई दिल बहलाने वाली कहानी नहीं है ना कोई कविता और मेरे विचार ये में अपने तीन दोस्तों के लिए लिख रहा हुँ जो मेरे दिल के बहुत करीब है,(पहला मेरा लम्बू,दूसरी मेरी मोटो और तीसरी मेरी छुटकी)ये पढ़ के आपसे सहानुभूति या पैसे की उम्मीद नहीं है बस अगर कुछ दिल को छुवे तो दुवा करना क्युकी सुना है जहाँ दवा काम नहीं करती वहाँ  दुवा काम आती है।हम सब शिकायते करते है हर चीज़ को लेकर खाने से लेकर देश की सरकार तक पर कभी सोचा है एक इंसान ऐसा भी जो 365 दिन 24 घंटे काम करता है और एक दिन की भी छुट्टी नहीं करता बल्कि संडे और त्योहारों  में उसका काम डबल हो जाता है वो ना कभी प्रमोशन के लिए लड़ता है ना कभी काम करने से मना करता है.। मेरी बातों  पर विश्वास नहीं में बात कर रहा हुँ "माँ"की अब जो बातें  कही खुद सोच के देखना क्या कभी आपको माँ ने कहा मै  काम नहीं करूंगी??? 
                          जो भी कहो माँ जैसा कोई नहीं होता उन्हें कभी दुखी मत करना वरना कभी  खुश  नहीं रह पाओगे,माँ अकेली तुम्हारे लिए दुनियाँ से लड़ सकती है आप सोच रहे होंगे में माँ को लेकर इतना सेंटी  क्यों हो रहा है.। मैंने कहा था ना ये तीन दोस्तों के लिए लिख रहा हुँ उन सब में एक चीज़ सम्मान है माँ को खोने का दर्द और डर सुनें में भयानक है पर सच है मेरे तीन दोस्तों में दो लोगों की माँ नहीं है और तीसरी  हालत इस बात से अंदाज़ा लगा सकते हो के जब दिमाग को पता है के ये मुमकिन नहीं और दिल मानें को राजी ना हो.……।अपने  फिल्म आनंद देखी है उन्हीं हालातों  में खुद को रख कर देखो किसी ऐसे को खुद से दूर जाते देखना जिसे आप नहीं जाने देना चाहते पर मज़बूरी के चलते,सिवाए बेबसी से उसे दूर जाते देखना एक बुरे सपनें  से कम नहीं है। 
                                    मैंने तीनों के दर्द को बहुत करीब से देखा है उन्हें अकेले में रोते देखा है,उनकी आदतों  में वो कमी महसूस की है मैंने जैसे पर सिवाए उन्हें समझाने के में भी  चुप हो जाता हुँ।उन्हें हिम्मत देते देते अकेले में उनसे छुप के में भी रो जाता हुँ,पर मुझे दुवा चाहिए मेरी छुट्ट्की की माँ के लिए उन्हें बीमारी है वो आखरी स्टेज पर है मुझको उनका हँसता  चेहरा आज भी याद आता है जब सब उनके घर मस्ती मारा करते थे। पर वो घर दो साल से बंद है जब भी उस गली में जाता हुँ उस घर पर जरूर रुकता हुँ आंटी इलाज के लिए पिछले २ साल से दिल्ली में है.। 
                                         दो साल से मैंने उसके चेहरे पर वो मासूम बेफ़िक्र हस्सी नहीं देखी,शायद उसको भी याद नहीं होगा के आखरी बार पुरे परिवार के साथ कौन सा त्यौहार मनाया होगा। मेरी आखरी बार जब छुटकी से बात हुई थी तब उसने बताया के उनकी बॉडी में खून नहीं रुक रहा हर शुक्रवार उनको नया खून चढ़या जाता है पर हफ्ते के अंत में होमोग्लोबिन ना के बराबर रहता है,पर माँ पहले से जयदा स़्वस़्थ हो रही है बस ऐसे ही उनको जल्दी ठीक करने के लिए दुवा मांगने की आपसे दुवा मांग रहा हुँ। 

:-मनीष पुंडीर 

                        

                      

 """""आज कुछ बताने का मन है मै जितनी भी सच्ची भावुक कहानियाँ  लिखता हुँ ख़ुद  को मजबूत करने के लिए क्युकी ये वो कहानियाँ और बातें है जो अकेले में भी सोच कर मुझे मानसिक रूप से कमज़ोर करते थे पर अब उस डर  को में खत्म करके आपके सामने हुँ  आज.।शायद मेरी ये बात आपको बचकानी लगे पर मेरे ये तीनों  दोस्त मेरे साथ पिछले 10 साल से है जयदा वक़्त से मेरे साथ है मुझे कही न कही लगता है के में उनके साथ जुड़ा हुँ तो कही न कही में इन सब चीजों  का ज़िम्मेदार हुँ।ये मन में हर बार ना चाहते हुवे भी आता है जिससे भी जयदा लगाव रखता हुँ उसके साथ बुरा होता है।बस दिल की बात थी आप तक पहुँचा दी पर दुवा करना माँ के लिए """""



Sunday, September 21, 2014

मतलबी दुनिया.........

ये दुनिया है यहाँ आदमी याद मतलब तक.. 



सभी है मतलब से यहाँ बस सभी मतलबों के मायने अलग है,
कड़वी है बात पर आखरी वक़्त में कोई ना रहता साथ…। 

अंधे को रास्ता तो कोई भी पार देता है करवा,पर आँखे देने वाले कम ही होते है.. 
याद रखें इस बात का जो जिंदगी में कभी हाल पूछने नहीं आये वही सबसे जयादा आंसू रोते  है.। 

"डॉक्टर यही चाहता है के आप बीमार पड़ो,
कफ़न बेचने वाला आपके यहाँ किसी के मरने की राह देखता है।
एक  वक़ील  हर वक़्त आपके घर में कलेश होने की दुवा करता है.… 
सिर्फ एक चोर है जो आपके सुख चेन की नींद भगवान से मांगता है"

इंसान की बहुत पुरानी आदत है अपनी सारी  गलती किस्मत पर थोपना..... 
देख कर चलते नहीं खुद और ठोकर लगने पर पत्थर को दोष देते है.। 

मतलब के लिए भगवान को भी "स्कीम्स" के लपेटे में लपेटा जाता है.… 
खुद सरसों का तेल खाने वाला,चढ़ावे के लिए लड्डू भी देसी घी के लाता है.। 

मैंने देखा है लोगों को दूसरों की औक़ात के हिसाब से अपना लगाव तोलते हुवे…… 
अपने मतलब की रोटी सेकने को सामने भला कहने वालो को,पीठ पीछे बड़ा मुँह  खोलते हुवे।


हमने नही छोड़ा किसी को,जिसका मन भरता गया वो हमें भूलते गए..
हम उनकी ख़ुशी के लिए उन्हें हसाते गए और वो जोकर समझ हमारा मजाक बनाते गये.

हद तो तब हुई जब उन्हें आदत हो गयी मुस्कुराने कि और वो कीमत पूछने लगी उन्हें हसाने कि.। 

:-मनीष पुंडीर 

Friday, September 19, 2014

‪खामोशी‬

दिल में एक फ़ास है जो लाईलाज है.।

प्यार जिसका पहला अक्षर ही विकलांग है,क्या उम्मीद करू इसे!!!!
खुद तो लाचार है,जिसके पास होता है वो भी लाचार हो जाता है.. 

यु यूँ   गयी है हालत अब के हालातों पर भी खुद की अब हँसी  आती है.…
कल तक जो ख़ास था जीना-मरना जिसके साथ था,आज वो ही पास नहीं है.… 

शिकायतों के सिवा अब और कुछ बचा नहीं,हम प्यार को और प्यार हमे कुछ जच्चा नहीं।
लड़ने की भी उसे अब हमारी हिम्मत नहीं होती,ये खेल नहीं यहाँ  जीत किसी को नहीं होती।

अब ना कुछ खोने का डर है और ना ही किसी को पाने की चाह.… 
आँखों में है आँसू पर में रोता नहीं,वो दिख ना जाये ख्वाबो में ये सोच में सोता नहीं।

नफ़रत भी होती है उसके दूर होने के ख्याल से पर फ़िर अपने ही प्यार पर शक होता है.। 
पता उसे भी है के खबर हम उसकी आज भी रखते है,बस अब वो जताते  नहीं और हम बताते नहीं ....

अपनी बेफ़िक्री का बहाना बना हँसी खुद की उड़ा लिया करते है,अंदर आज़ भी दिल-ओ-दिमाग लड़ा करते है.. . 
यारों में बैठ कभी जिक्र जो तेरा हो जाता है,हम भी यादों के पन्नों से कुछ चुरा लिया करते है.…

मंजिल भी खो दी हमसफ़र भी नहीं रहा,नहीं होगा अब हमसे अब हमारी दुवाओं में वो असर नहीं रहा.....
प्यार इश्क़ और मोहब्बत जो खुद आधे है,बस उसी को पूरा करने में मेरी कहानी अधूरी रह गयी.……


आज मन शांत है,दिमाग किसी उधेड़बुन में लगा है.… 
यूँ तो बहुत है उलझने पर सुलजाने का मन किसका है.…
किसको दोष दू इस बात का,अब बहस करना भी हमारे बस का नहीं।

सुनकर ग़ज़लों को उनकी धुन में खुद को गुम कर रहा हुँ..... 
कोई शिकायत नहीं किसी से है बाकि एक फ़ास है जो लाईलाज है.।
काश कहने से भी अब होगा क्या?? वक़्त बदलेगा नहीं और किस्मत समझेगी नहीं।
कुछ सिख लिया है इस अकेलेपन से जैसे खुद को पा लिया हो तुझे खोते खोते....
प्यार से अपना हिसाब अभी बाकि है,बुलाओ उस यादों को जिसने हमे देखा साथ में.....
फिर बताऊंगा इस दिल को के फर्क इतना है,मुझमे और मेरे प्यार में.....
प्यार को मरना नहीं आया और उसके बगैर हमें जीना नहीं आया.........

Wednesday, September 17, 2014

बाँटो हंसी खुशी प्यार पैसे नहीं लगते।

एक बार सोच के देखो………


                                                       बचपन में हम खुशियों  की वजह नहीं ढूंढते थे हर चीज़ में खुशी मिलती थी हमे याद करना जरा एरोप्लेन जाता था उसे देख हम टाटा करके कितने खुश  होते थे,जब घर क बाहर आइस-क्रीम वाले की घंटी टन -टन करती थी तो हम खिड़की से ही आवाज़ देकर उसे रोकते थे तब कितनी खुशी  मिलती थी।पापा के जूते चुपके से पोलिश करके उन्हें देते थे,माँ की ऊँगली पकड़ के सोते थे। मेरा मानना है की ये मासूमियत हमेशा अपने साथ रखोगे तो खुश रहना भी सिख जाओगे और खुशी बाटना भी सीख जाओेगे,हर एक के अंदर बड़े होने के बाद भी मन में एक बच्चा छुपा होता है उसे जिन्दा रखोगे तो जिंदगी में खुश रहोगे। पर ये मेरा मानना है क्युकी मैंने ये खुद महसूस किया आपको मानना  है तो आप भी आज़मा के देख सकते है,बाकी जिस दिन खुद ये महसूस करो तो आगे भी ये सोच बढ़ा देना।बाकि टॉम एंड जेरी देख के शायद आज भी हँसते  हो तुम????      
                              पैसो से खुशी नहीं खरीदी जाती कभी एक गुलाब का फूल वो काम कर जाता है जो एक हीरे की अंगूठी नहीं करवा सकती,हँसने की आदत ही डाल लो आपका हँसता चेहरा देख क्या पता कुछ देर के लिए ही सही कोई अपनी फ़िक्र ही भूल जाये।कितना महंगा है किसी को मुस्कान बाटना????  उतना ही महँगा जितना सूरज से रौशनी लेना,चाँद को मामा कहना..........मानों या ना मानों पर थोड़ा थोड़ा छोटी छोटी चीज़े करके बड़ी बड़ी मुस्काने पा सकते हो।हाँ  हाँ  समझ गया मन में चल रहा होगा कैसे?? लो जी जितना हमारे पले पड़ा है आजतक वो आपके पाले में भी भेज देते है.


            
                        आज घर जाकर माँ को गले लगा कर या जो मेरी तरह उनसे दूर है उन्हें फ़ोन करके "I LOVE YOU SO MUCH" कहना सुकून और खुशी का परफेक्ट कॉम्बिनेशन तब एहसास  होगा,हर किसी को मुस्कुरा कर थैंक्यू बोलना अपने ऑफिस बॉय से लेकर दूध वाले भईया तक को उसी तरह जैसे बचपन में घरवाले सीखते थे "कोई अंकल आपको  चीज़ी  दे  तो उन्हें थैंकू  जरूर  बोलना " ये आदत का सुकून का पता उन चेहरों पर देखना जिन्होंने लोगों  की झिकझिक के इलवा आज थैंक यू सुना।हम वैसे जल्दी किसी पर भरोसा नहीं करते और खराब माहोल को दोष देते है अब्ब्ब्ब्बे यार माहोल ठीक करने रजनीकांत जी आयंगे नहीं??? पर इंडिया-पाकिस्तान का मैच हो स्कोर पूछने में हम नहीं सोचते,जब कोई आपके सामने लडख़ड़ा कर गिरे तो आप उठाने जायंगे इसी उमीद में कल को हम भी तो लडख़ड़ा सकते है। 
                              बहुत सी ऐसी चीजें है जो हमें  एक दूसरे से अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ती है उन चीज़ो को लेकर हम सोचते नहीं है एक हमारा इंडिया-पाकिस्तान का मैच,हमारा खाना सरदार जी को डोसा पसंद है तो हमारे बासु डा को छोले भटूरे हमारी तमिल वाली आंटी को ढोलका बड़ा सवाद लगता है और हमारे गुजराती भाई को सरसों के साग का स्वाद अज़ीज़ है।अपने यहाँ तो जी इंसान को खाना खिला कर खुश कर दे,खेर खाना तो हमेशा रहेगा,ये बताओ कभी खून दान किया है करके देखना किसी का जान बचाने का एहसास क्या होता है पता लगेगा।कौन कहता है आजकल बिना शर्तों  के प्यार करने वाला नहीं मिलता??? अजी ढूंढने वाला  चाहिये यकीं नहीं तो कभी किसी नन्ही सी जान (pet) को घर लाकर देखना और अपने साथ रखना आपके लिए तो शायद वो सिर्फ एक जानवर हो पर उसके लिए उसका सब कुछ आप ही होंगे।
                      

                                    जिंदगी माना थोड़ी व्यस्त है सब अपने अपने कामों में मस्त है ज़यादा पैसे कमाने की दौड़ जबरदस्त है,पपरररररर हमने कौन सा आपको ताज़महल बनाने को कह दिया ग़ौर करना अगर थोड़ा भी कुछ समझ में आया हो तो.………………?????? तो क्या वो भी में बताऊंगा।आपके लिए एक लाइन "पहले इस्तेमाल करे,फिर विश्वास करें" पैसे कमाने के चक्कर में यादें  गवा दोगे,पैसे तो फिर भी कमा लोगे वक़्त को दुबारा कैसे पलटोगे?? ।बस मुझे इतना ही आता है अभी तक इतना ही सिखया जिंदगी ने पर मुझे तो खुशी  बाटना आ गया,अब इतना ही कहना था बाकि आप पर है आप इसे पढ़ के एक बार मुस्का भी गए तो भी हम खुश और इसी सोच को खुद महसूस करके जियोगे तो आप बी खुश और हम तो पहले से ही खुश  है   .……… हा हा हा हा हा हा। 
    
:-मनीष पुंडीर 

Tuesday, September 16, 2014

दिमाग है सोचने के लिए ना की भेड़ चाल के लिए.…।

आधा सच एक झूठ से भी अधिक खतरनाक होता है..... 


                   
                           जैसे की हम सभी को सामाजिक पशु कहा जाता है,पर वक़्त के साथ साथ लोगो की सोच भी पशुओं  जैसी होती जा रही है।हाल ही में एक घटना ने काफी खलबली मचा दी है "स्वेता बासु" घटना इन्ही से जुड़ी है,इनका नाम कुछ दिनों पहले वेश्यावृत्ति के मामले में सामने आया है।इन्हे एक पांच सितारा होटल से पकड़ा गया,पर इनके साथ जो श्रीमान थे उनका कोई अता -पता नहीं है।अब लोगों तक सिर्फ इतना परोसा गया के ये वेश्यावृत्ति में थी,किसके साथ पकड़ी गयी और कौन कौन जुड़े है इस मामले से??? 
                                      खेर अगर कभी च्यवनप्राश खाया हो तो थोड़ा "स्वेता बासु" के बारे में याद करवा दू ,ये वही है जो मकड़ी फ़िल्म में अपनी बहन  के लिए चुड़ैल  से लड़ी थी और इक़बाल में अपने गूंगे-बहरे भाई की आवाज बनी थी। इनके नाम एक राष्ट्रीय पुरस्कार भी है फिर खबर ये आई के इन्होंने कहा के "मेरे ऊपर घर की जिम्मेदारियाँ  थी इसलिये  मैंने ये कदम लिया"।इनकी ये बात हमारे समाज के गले नहीं उतरी अब उतरे भी कैसे यहाँ  मीडिया की बात पत्थर की लकीर वाला हिसाब है,अब हमारे सामाजिक पशुओं से ये पूछना चाहता हुँ।इंसान की तीन मूल अवकसता होती है रोटी,कपड़ा  और मकान और जब ये तीनों  में से एक की कमी पड़  जाये तो जो उसके बस में होता है उतना वो कोशिश करता है। 
                                       बाकि यहाँ बात वेश्यावृत्ति की बात है,कई देशों  में ये वेश्यावृत्ति को कानूनी तौर पर मंजूरी मिली हुई है।जब आप इस चीज को बढ़वा दे सकते है मरने के बाद अपनी आँखे दान करो,खून दान किया करो.…………………तो वो उसका शारीर है वो अपनी मर्जी से उसके साथ कुछ भी करे।रेप के लिए कैंडल  मार्च करने से कोई अच्छा काम नहीं हो जाता,सोच बदलो अगर नहीं बदल सकते तो इंतजार करो अगले बड़े रेप का और फिर जाना कैंडल लेकर।खुद को कभी उस जगह रख कर देखो जिसपर सब उंगली उठा रहे हो कोई साथ देने को तैयार ना हो,जिसपर बीती हो जिसने वो वक़्त देखा हो के आँसू आँखों में थे पर बाहर  नहीं आने दिए क्युकी दुनियाँ मज़ाक बनायेगी।


                         बाकि आजकल सबकी पसंद सनी लियॉन किसी परिचय की मोहताज़ नहीं हाँ पहले ये लोगो के कम्प्यूटर के हिडन फाइल्स में छुपा करती थी अब सबके सामने है,मुझे सनी से कोई दिक्क़त नहीं पर और उसे भी अपने बीते कल से कोई शिकायत नहीं है क्युकी वो उन्होंने खुद चुना था।आपको पता लगे के जिसे अपने शादी की उसका रैप हुवा था तो आप क्या करंगे??? में किसी का पक्ष नहीं ले रहा पर आप लोगों  की सोच को मेरा नमस्कार है,कैसे कर लेते है आप ऐसा?? मानना पड़ेगा।जिंदगी फिल्मों की तरह नहीं होती यहाँ किसी विलन की ज़रूरत नहीं पड़ती ये खुद-ब-खुद रुलाती भी है,हँसाती भी है और सिखाती भी है,मजबूरी  बहुत बुरी चीज़ होती है वक़्त आने पर सबकुछ छीन  लेती है। 


  बाकी दो दिन पहले खाई सब्जी आपको याद नहीं रहती तो ये मेरी बातें एक बार पढ़ने  से क्या होगा?? अब मै सब कुछ बदल नहीं सकता पर,इस "मै को हम " करने का प्रयास करता रहूंगा। बाकि जो मेरे मन में एक सवाल अभी घूम रहा है कृपया उस पर अपने विचार दे.…… तो एक अधूरे सच के साथ लोगों ने एक अच्छे कलाकार को खो दिया??? 

:-मनीष पुंडीर 


Monday, September 15, 2014

भूत वर्तमान और आप पर है भविष्य……………

हम इंडियन नहीं भारीतय है.....!!!

        


 मुझे किसी अन्य भाषा से कोई दिक्कत नहीं है परन्तु मै आप सभी लोगों  को केवल इतना याद दिलाना चाहता हुँ  के हम भारत में रहने वाले भारतीय है,हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है।"सरल स्पष्ट और सुलझी हुई" पर हमारे यहाँ से अंग्रेज़ चले और अपने पीछे अंग्रेजी छोड़ गए,वैसे मेरी कुछ बातें शायद आपको बुरी लगे पर अब हर किसी को करेला पसंद भी तो नहीं आता।जैसे की मैंने ये खुद महसूस किया आजकल अगर लोगों को थोड़ा बहुत हिंदी में दिलचस्पी है तो वो दो ही वजह है पहला हिंदी के बेटे "कुमार विश्वास" की प्रेम पर लिखी कविताओं  से और दूसरा "यो यो हनी सिंह" के रैप पर। तो मेरी यही कोशिश रहेगी दोनों की थोड़ी थोड़ी शैली लेकर आपको अपनी बात बताने की कोशिश करू। 
तो हिंदी के भूतकाल पर नज़र  डालते है चलिए कुछ यादें  आपकी भी ताज़ा करवाते है!!!
      "हिंदी" जब बोलना सीखा था तब पहला शब्द "माँ" ही निकला था
               दादी-नानी के किस्से रात को सोने से पहले बड़े मजे से सुनता था.
                     स्कूल में बचपन की वो चंपक भी तो तेरी ख़ास हुवा करती थी.
                        और कैसे भूल सकता है तू राजा,रानी,चोर,सिपाही की वो पर्ची।


एक वक़्त था जब सुबह आँख कबीर के दोहों  के साथ खुलती थी और रविवार को DD1 पर महाभारत और श्री कृष्णा के श्लोकों का अर्थ दादी-नानी समझाती थी,पर अब हालात कुछ बदले है  "अ आ इ ई" पूरी आती नहीं किसी को पर "A B C D" आजकल एक साँस  में सबको रटे  है।अब सबको वैलेंटाइन डे हमेशा याद है रहता पर हिंदी दिवस की तो लोगों  को जानकारी भी नहीं,मेरे यारों  एक बात याद रखना
               "खुद में कितना भी विदेश ले आ जितना लाना है,पर अंत में लौट के बुद्धू घर ही आना है"। 
                  "घूम तू पूरी दुनिया में पर पाप धोने आखिर में गंगा ही आना है.……
 हम भारतीय बहुत मतलबी हो गए है,कल को अगर मोदी सरकार ने ये योजना खोल दी के जो हिंदी भाषा का प्रचार करने वालों का टैक्स नहीं देना पड़ेगा तो पुरे भारत में अगले ही दिन अंग्रेजी प्रयोग करने पर रोक लग जाएगी।आज सबकी सोच "मै" की हो गयी  है जिस दिन मै  की जगह हम सोचने लगंगे उस दिन देश  विकास की असली सुरुवात होगी। 
              अब हिंदी बोलने वालों  को भारत में अनपढ़ 
समझा जाता है,अब नमस्कार हाई-हेल्लो में बदल गया है।ऐसा नहीं है लोग हिंदी पसंद नहीं करते या बोलने में अटकते है,नहीं बात सिर्फ हिचकिचाहट की है के मै   बोलूंगा तो सामने वाला मुझे कम  समझेगा या उसके सामने इज्जत घट  नहीं जयेगी।अमा यार अब  मोदी जी बाहर  जाकर हिंदी में भाषण दे आये अब भी समझ नहीं आया अच्छे दिनों के लिए हिंदी उतनी ही जरूरी है जितनी अंधे के लिए आँखों की और ठाकुर के लिए रामलाल के हाथों की।बाकि हिंदी हमारी मातृ भाषा है तो कभी माँ को माँ बोलने पर शर्म आई है बाकि हिंदी के साथ ऐसा क्यों??????
                    हाँ उन लोगो के लिए कुछ जरूर कहना बनता है जो ट्रेंड के नाम पर अंग्रेज़ी के शुभ चिंतक' बने बैठे है,इस बात पर कुमार विश्वास जी ने बड़ी अच्छी बात कही 
"ये चकाचौंध की दुनिया ये ग्लैमर ये ट्रेंड सब अमिताब बच्चन के ज़माने  के है,हम हिंदी प्रेमी हरिवंश राय बच्चन की परंपरा के लोग है"
       बाकि  समझदार को इशारा काफी कल के लिए आपको आज से सुरुवात करनी होगी,हिंदी हमारी है उसे उसी तरह अपनाओ जैसे अपनी माँ के लिए मन में आदर का भाव रखते हो,माँ के आशीर्वाद में "जिए तू जुग  जुग" तो हर वक़्त सुना होगा अब आपकी बारी  है।आप आशीर्वाद तो नहीं दे सकते पर इतना जरूर कर सकते हो के आपकी हिंदी माँ युगों-युगों तक फले-फुले और आने वाली पीढ़ी की माँ से "जुग जुग जियो" का आशीर्वाद ही मिले। 

:-मनीष पुंडीर 
  

Friday, September 12, 2014

अजीब जिंदगी।

जिंदगी कैसी है पहेली हाय.?






याद है आनंद  फिल्म की ये लाइन्स जिन्हे आज भी सुनो तो उतनी ही यथार्थ लगती है जितनी पहली  बार सुनें  में लगी थी.…।
" बाबूमोशाये , जिंदगी   और मौत उपरवाले के हाथ है जहाँपनाह। उसे ना तो आप बदल सकते है ना मैं ,हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं जिनकी डोर उपरवाले की उंगलियो में बंधी है। कब……कौन.…कैसे उठेगा यह कोई नहीं बता सकता है। …हा हा हा हा '"

बहुत अजीब है अपनी ये जिंदगी हँसाने  वाले बहुत मिलते है पर याद हमेशा रुलाने वाला ही आता है.… 
यहाँ लोगों  की तमनाये ख़त्म  नहीं होती जाना सब स्वर्ग चाहते है,पर मरना कोई चाहता नहीं ……। 

जिंदगी क्या है कितनी है सबके अपने फंडे  है सबका अपना राग है,
किसी के लिए कल की फ़िक्र तो किसी के लिए बस आज है.
मज़बूरी-मुक्क़दर सबके हिस्से है सबके पास अपने अपने किस्से है 

जयादा हँस  भी लो तो भी आंसू निकल आते है और कभी एक हँसी  हँसने  को भी जी नहीं करता।
जिंदगी का सीधा हिसाब है कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ेगा,
जितनी हँसी  लिखी है होटों  पर उसके लियें आँखों को उतना ही रोना पड़ेगा …… 
कोई जिंदगी पैसों के लिए खर्च कर देता है,बाकि कुछ दूसरों  की खुशी में अपने मुनाफे की हँसी से खुश  है!!!

कोई समुन्दर की मछली बनकर खुश  है,तो कोई तालाब का मगरमच्छ होकर सुकून में है..........
कुछ जिंदगी एक ही काम में लगा देते है तो कुछ एक ही जिंदगी में सारे काम कर जाते है.… 
सुकून तेरा कहाँ  है? ये तुझे ही चुन्ना है,कोई और नहीं आने वाला तेरी खुशी  के लिए तुझे ही लड़ना है.
जाना एक दिन सबने है पर जाने के बाद कौन तुझे कैसे याद करता है ये तेरे आज पर निर्भर है,
तू जिंदगी में अपनों को कमाता है या कुछ चीजो के लिए उनको गवाता है ये सिर्फ तुझ पर है.……। 

तेरे रोने से उसी को फर्क पड़ेगा जिसके आंसू पोछने तू कभी गया होगा,
उसी से मांगने ही हिम्मत होगी तेरी जिसे कभी कुछ दिया होगा।
कड़वी सचाई है जिंदगी की सभी यहाँ मतलब से जुड़े है,हिसाब यहाँ बाप-बेटे में भी है।
आाजकल उलटी गंगा बह रही है,अपनी खुशी से जायदा दूसरों का दुःख अब लोगो को सुकून देता है। 
कल की फ़िक्र में आज की हँसी अगर खोता जयेगा,तो ना तेरा वो कल आएगा ना आज को जी पायेगा....
कुछ नहीं हासिल होगा तुझे फिर आखिर में तू किस्मत को रोता जयेगा। 

:-मनीष पुंडीर 

आखिर में ग़ालिब का शेर जो बहुत खूब सिखाता है जिंदगी का फलसफा
        
"कुछ इस तरह मैंने जिंदगी को आसान कर लिया,

         किसी से मांग ली माफ़ी और किसी को माफ़ कर दिया।"

Tuesday, September 9, 2014

माँ या बाप ?????????

हालात मौत मज़बूरी!!!!!

                                                       इस हालत से अच्छा सुकून से मर जाती तो वो ज्यादा अच्छा होता,पापा ने दादा से पूछा के कैसे हुवा ये सब तो दादा ने कहा तेरी माँ सीढ़ियों  से गिर गयी थी..................हम सब एक दूसरे को देखने लगे जैसे किसी को भी दादा की बात पर यकीं ना हुवा हो,पर दादा की बात पर ऊँगली कौन उठाता?? उस वक़्त सबसे बड़ी चिंता थी दादी को किसी तरह बचाना,पापा ने बड़ी एहतियात से दादी का सर उठा कर तकिया रखा उस वक़्त दादी को कोई होश नहीं था तो वो हम में से किसी को भी नहीं पहचान रही थी।तो उनके खून के धब्बे साफ़ करते हुवे पापा ने कहा आराम करने दो इन्हे अभी,उनके चेहरे से पता चल रहा था के उनके मन में बहुत कुछ चल रहा है पर अभी माँ की हालत सुधारना जयदा जरूरी था तो उन्होंने बहन को गर्म पानी करने को कहा और दादी को गोद  में उठाकर बाहर बरामदे में ले गए। 
                                        पानी गर्म होने के बाद पापा ने दादी के सारे बाल काट दिए क्युकी वो चोट  पर लग कर चिपक रहे थे जिसे इन्फेक्शन का खतरा था उन्होंने दादी के जख्मों को बचा कर उन्हें गंजा किया और फिर उन्हें खुद नहलाया,उन्हें खाना खिलाने  की कोशिश की पर उनका मुँह  नहीं खुल रहा था,तब मजबूरन गले में पाइप के सहारे उन्हें पानी और तरल पदार्थ दिए जा रहे थे,फिर वो खून से लथपथ कपड़े बदले अब उनके सर के जख्म साफ़ साफ़ दिख रहे थे मानों  किसी ने कुल्हाड़ी से बार बार वार किया हो। वो देख मेरी रूह तक काँप गयी उस दिन पहली  बार दादी की चोटों  को देख पापा की बायीं आँख से एक आंसू टपकता देखा,दादी की इस हालत को देख कोई भी बता देता की उन पर वार किया गया है पर दादा जी की बात पर यकीं करने के इलवा और कोई रास्ता नहीं था।पापा ने दादी को थोड़ी  देर धुप में बिठया  और बात करने की कोशिश की पर वो एक मूरत की तरह स्थिर थी,जैसे की वो हमारे साथ होकर भी नहीं है वो एहसास  बहुत अजीब भयानक था। 
                                            माँ पापा और हम सब दादी के लिए दुवा कर रहे थे और उनकी पूरी सेवा कर रहे थे,उनकी हालत  में सुधार आ रहा था अब दादी चमच्च से दाल सूप वग़ैरा पि रही थी,उसी रात मुझे भी पहचान कर ईशारे से मुझे अपने पास बुलया और मेरे बालों  पर हाथ फेरने लगी मैंने भी उनका हाथ अपने हाथ में पकड़ के चुम लिया और कहा दादी हम सब यही है आपको कुछ नहीं होगा। उस दिन सब थोड़ा सुकून में थे दादी की तबियत में सुधार देख सबको उमीद थी के अब हम दादी को ठीक कर लेंगे,सब चेन से सोये उस रात पर हमे क्या पता था के वो रात  दादी जी की आखरी रात थी हमारे साथ.………। 
                                               सुबह 5 बजे मेरी आँख खुली दादी को देखने का मन हुवा उनके कमरे में गया पर दादी बड़ी बड़ी खुली आँखे देख एक बार को में डर गया,मैंने माँ-पापा को आवाज़ मारी वो जब कमरे में आये तो पापा ने दादी से बात करने की कोशिश की पर सब बेकार था उनका शारीर अकड़ा हुवा था। माँ फिर उसी सदमे में चिला  कर रोने लगी 6 बजे तक सभी गाँव  वाले हमारे घर में थे,कोई लकड़ियाँ  लेकर आ रहा था तो कोई आकर माँ को समझा रहा था,तीन लोग अर्थी बनाने में लगे थे,मै माँ के बगल में बैठ उनका हाथ पकडे हुवे था वो चुप ही नहीं हो रही थी रोते  जा रही थी पापा एक कोने पर लोगो की बातो पर सर हिला रहे थे पर वो भी शांत  थे और दादा बरामदे में कुर्सी पर अपने हमउम्र लोगो के साथ बैठे कुछ बात कर रहे थे।
                                               8 बजे अर्थी उठी पहली  बार कोई अर्थी बनते देखी थी और सबको रोता देख सोचा मै  नहीं रोऊंगा फिर अर्थी को कंधा देने की बारी आई तो तब मैंने कंधा  दिया तो आँखों में आंसू थे खुद-ब-खुद बहते  गए बहते गए,ये सब मेरे लिए पहली  बार था समशान पहुंचे दादी के शारीर  को जलाया वही उनके लिए पापा ने और मैंने बाल मुंडन(दान) किये।उन पुरे पलों  में एक ही ख्याल आ रहा था के जैसे दादी मुझसे कह रही हो के तुझे देखने के लिए ही जान बचा रखी थी और अचानक वो याद अ गया जब उनका हाथ मेरे बालों था और मैंने उनका हाथ अपने हाथ में पकड़ के चूमा था।फिर दादी की तेहरवीं  और बाकि सारे काम निपटा कर हम सब वापस लौट आये दादा भी साथ में थे।आने के बाद पापा और दादा में कही बार इस बात को लेकर बहस  होती थी के दादी को असल में हुवा क्या था?? दादा हर वक़्त चिला  जाते के तुझे मेरी बातो पर विश्वास नहीं है??
                                                       कैसे कर लेते विश्वास मन मानने को तैयार नहीं था पर फिर भी दादा के इलवा सचाई कोई जनता भी नहीं था,फिर कहते है वक़्त से बड़ा मरहम कोई नहीं है दादी के देहांत को 7 महीने हो चुके थे।पापा भी छुट्टियों पर आये  हुवे थे मै  स्कूल से लौटा  ही था खाना खाने के बाद दादा ने पापा को माँ को और मुझे पास बुलया और अजीब सी बातें  करने लगे की गाँव  में हमारे सारे खेत कहाँ  कहाँ  है किसी को उधार ना ही दिया है और ना किसी से कुछ लिया है.फिर पापा ने एक दम से पूछा माँ को किसने मारा दादा इस बार चिलाये  नहीं वो उसी आवाज़ में बोले जब कोई दर्द से भरा होता है "मैंने मारा तेरी माँ को हाँ मैंने मारा,परेशान  हो गया था उसकी गुलामी करके आते जाते लोगो को पत्थर मरती थी मुझसे सारे  काम करवाती थी.…पागल हो गयी थी वो मैंने मारा उसे और पुलिस में देना है देदो मुझे पर और कोई नहीं था मेरे साथ अकेले मारा मैंने" इतना बोल के वो चुप हो गए,पर ये बात हम भी जानते थे वो अकेले कभी भी दादी को काबू नहीं सकते थे पर दादा ऐसा क्यों कर रहे थे ये तो सिर्फ वहीं  जानते थे। 
                                               दादा जी वैसे तो दाँत  ना होने के कारण  दूध में एक-आधी  रोटी डुबो के खा लेते थे या मैग्गी खाते थे,पर उस वाकये के दो दिन बाद रात में दादा ने 8 रोटिया खायी और सो गए वो रात उनकी आखरी रात थी वो सुबह नहीं उठे और वो राज़ भी उन्ही के साथ सो गया के दादा के साथ दादी पर हमला करने वाला कौन था.…………………आज भी मै  अपने दादा को दोष देता हुँ पर मेरे मन में हमेशा ये रहेगा के सब कुछ पता होने के बाद पापा ने दादी के लिए कुछ नहीं किया या उन्हें अपने बूढ़े  बाप का ख्याल ज्यादा  था??????????????? आपकी नजरों  में उन्होंने किसके साथ सही किया????? माँ या बाप?????????

(आखिर में एक गुजारिश है आप भी अपने ग्रैंडपैरेंट्स और उन सभी लोगो को प्यार,वक़्त और उनके लिए जो खास कर सकते हो करो,क्या पता कल हो न हो?)


:-मनीष पुंडीर 
















माँ या बाप ?????????

सच्ची कहानी एक बेटे की जो आज तक फैसला नहीं कर पाया के उसने किसके साथ सही किया माँ या बाप??

                 कहानी शुरू करने से पहले में आपको थोड़ी जानकारी दे दू उन लोगो की जो इस कहानी में है.

बाप (जगमोहन)

उत्तराखंड के एक गाँव में रहने वाला एक रिटायर बस कंडक्टर जो जवानी की दिनों में जुवे और दारू की लत में इतना घिरा था के बुढ़ापे में उसके बदन पर मॉस कम हड्डिया जयदा दिखती है.अब अपनी बीवी के लिए सारा काम करता है कपडे धोने से लेकर खाना बनाने तक...

माँ (कमला)

जिसने पति की जुवे की लत के चलते जवानी लोगो क घरों  का काम काज करके गुजारी है,अब बुढ़ापे में वो उस चीज का बदला ले रही है अब वो सिर्फ हुकुम चलती है,बहुत जयदा अकेलेपन से थोड़ा दिमागी हालत ठीक न होने के कारण खुद में कुछ न कुछ बड़बड़ाती रहती है और हर वक़्त मुह में बीड़ी रखती है.

बेटा(गणेश)

बेटा  फ़ौज में है और अपने परिवार के साथ शहर में रहता  था,जब जब उसे मौका लगता वो सालों  में एक बार अपने माँ-बाप से मिलने गाँव आ जाया करता था,उसने बहुत बार उन्हें अपने साथ रहने की जिद की पर माँ-बाप को गाँव से लगाव था वो नहीं मानते थे।

गणेश की बीवी (रेखा)

वैसे रेखा की अपनी सास से कभी नहीं बनी पर उनको लेकर कभी दुश्मनी की भावना भी नहीं रही,रेखा का सीधा हिसाब था जैसे को तैसा।इनके दो  बच्चे थे सबसे बड़ा लड़का (16 साल) और एक लड़की (13 साल)

  

      तो आओे  शुरू करते है.....कहानी में आपको गणेश के बेटे के नजरिये से सुनाऊंगा तो ध्यान दिजयेगा 

............................ गर्मियों के दिन थे  हमारी  स्कूल की गर्मियों की छुट्टिया थी,सब एक साधारण सी सुबह की तरह ही था तभी फ़ोन की घंटी बजी माँ  ने फ़ोन उठाया बात करते करते उनकी आँखों से एक आंसू की बून्द गिरी वो जोर से चीलाई और रोने लगी और रोते  रोते  बेहोश हो गयी,हमने ये देखा तो अपनी माँ को संभाला और पानी के छींटे मारे जब उन्हें होश आया तो उनके मुँह  से इतना निकला के मेरी माँ नहीं रही सब लोग सन्न थे ये सुनकर। फोन फिर बजा  इस बार मैंने फ़ोन उठाया दूसरी तरफ पापा थे,उन्होंने कहा के  गाँव से फ़ोन आया था तेरी दादी अब नहीं रही तू अपनी माँ को संभाल में एक-दो दिनों में घर आ रहा हुँ  फिर गाँव जाना है। फ़ोन काट के मैंने माँ को चारपाई पर आराम करने के लिए लिटा दिया,उस वक़्त माँ  सदमे में थी पर थोड़ी देर बाद उसे एहसास हुवा के वो एक माँ भी है अगर वो ऐसे रहेंगी तो बच्चों  का क्या होगा।वो बिस्तर से उठी और रसोई में दिन के खाने की तैयारी करने लगी जैसे की कुछ हुवा ही ना हो,खेर हम  दोनों (मै  और बहन ) शांत होकर माँ को देख रहे थे। 
                                  दो दिन बाद पापा  भी घर आ गये  बहन  और मैंने उनके पैर छुवे और उनकी  तरफ देखा चेहरे पर अजीब सी मायूसी के साथ उन्होंने हमारे सर पर हाथ रखा और फिर माँ ने पापा  के पैर छुवे ही थे के माँ  से रहा ना गया,वो रोने लगी और पापा के गले लग गयी सबने मिलकर उन्हें चुप किया फिर सब काफी देर चुप-चाप थे जैसे किसी गहरी सोच में डूबे हो।चुप्पी तोड़ते हुवे पापा ने कहा की हम श्याम को ही गाँव के लिए निकलंगे तेरे दादा ने कहा है के हमारे जाने के बाद ही माँ का अंतिम संस्कार करंगे,सबने अपना अपना सामान बाँधा और श्याम को गाँव जाने की सारी  तैयारियाँ  हो गयी थी। तब हिम्मत करके मैंने पापा  से पूछा के क्या हुवा दादी को वो हफ्ते भर पहले ही तो बात हुई थी तब तो ठीक थी अचानक कैसे हो गया ये सब,सब सुनकरपापा ने  इतना ही कहा बेटा  तेरे दादा का फ़ोन आया था के तेरी दादी नहीं रही जितनी जल्दी हो सके गाँव पहुँचो अब वहीँ जाकर पता चलेगा के क्या हुवा है। 
                               सब बस मै  बैठे थे गाँव का सफर शायद इतनी शांति से कभी नहीं हुवा होगा जैसा उस दिन था रात का सफर था,सुबह 8-9  बजे पहुँचना  था रात बगेर  नींद की युही सनाटे में गुजर गयी। गाँव  तक बस नहीं थी उसे 3 km पहले उतर के पैदल रास्ता था रस्ते में पापा समझा रहे थे के सबके पैर छुना और माँ को कहा के रोना मत,रास्ता चढ़ाई वाला था हम धीरे धीरे चल रहे थे गाँव  के नीचे  पहुंचे तो दादा ने हमे देख लिया था क्युकी गाँव  की पहला  मकान हम लोगो का ही था।हम भी दादा को देख चुके थे पर उन तक पहुँचने से पहले हमारी नजरों  ने जैसे उनसे पूछना शुरू  कर दिया क्या हुवा माँ को?? क्या हुवा दादी को??? 
                               जैसे ही दादा के पास पहुंचे पापा ने दादा के पैर छूवे  और पूछा माँ कहा है,तब दादा ने जो कहा वो सुनकर हम समझ नहीं पाये के हम क्या प्रतिक्रिया करे उन्होंने कहा तेरी माँ जिन्दा है पर बचने की हालत में नहीं है ऊपर वाले कमरे में पड़ी है।ये सुनकर सब उस कमरे की तरफ भागे और अंदर जो हाल दादी का था भगवान किसी दुश्मन का भी वो हाल ना करें उनके सर पर खून की बहती धार सुखी हुई थी,हाथ पाऊ  हरकत में नहीं थे उनके बाल खून से लतपथ थे गले और कंधो पर काले चोट के निशान थे और आवाज के नाम पर सिर्फ दर्द में करहाने की आवाज़ आ रही थी।सब देख कर एक बार दिल से निकला इस हालत से अच्छा सुकून से मर जाती तो वो ज्यादा अच्छा होता,पापा ने दादा से पूछा के कैसे हुवा ये सब तो दादा ने कहा तेरी माँ सीढ़ियों  से गिर गयी थी...................................................  टू  बी  कॉन्टिनुएड
………… आगे की कहानी पढ़ने के लिए अगले अपडेट का इंतज़ार करे 



:मनीष पुंडीर 













      

Friday, September 5, 2014

शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाई।


 गुरु जीवन में वही काम करता है जो आँख अंधे के लिए और सूरज सवेरे के लिए करते है,
अहमियत उनकी तब पता लगती है जब हमारे सामने कोई अंघूठा लगता है और हम हस्ताक्षर करते है.
  
माँ जन्म देती है वो सवश्रेष्ठ है पिता लालन-पालन करता वो उनका कर्तव्य है.
पर जो गुरु ज्ञान देता है वो तुम्हे खुद को नया जन्म और भविष्य में खुद को समाज में रहने लायक बनाता  है.

 बचपन की मछली जल की रानी आज भी मेरे चेहरे पर मुस्कान ले आती है,
आज भी जब कोई तारीफ पाता हुँ तो याद उन्ही की आती है,ज्ञान ही नहीं मिलता उनसे तमीज़ भी आती है.

बचपन में जो बस्ता भारी लगता था आज फिर से उसे टांगने को तरस जाता हुँ,
इस दुनिया की फायदे-नुकशान वाली सोच से परे  मै फिर स्कूल जाना जीना चाहता हुँ.

गुरूओ की मार उस वक़्त बहुत बुरी लगती थी,पर आज तक उनकी सिख साथ है,
मुझे पता है मेरे अंदर एक अच्छा इंसान है  और इस विश्वास में मेरे गुरुओं का ही  हाथ है.

 :-मनीष पुंडीर 














यादों के पन्नों से........

                                      "मिशन इक़रार" फाइनल राउंड!!!!!



.................... जैसे शानू को  यकीन हो के हम जीत ही नहीं सकते।चलो अब महीने भर इंतज़ार तो नहीं करना पडेग़ा,सभी लगे पड़े थे अपनी अपनी प्रैक्टिस में घर में जन्मदिन पर कूदना अलग बात है पर पुरे स्कूल क सामने डांस ये थोड़ा टेढ़ी खीर था पर हम कौनसा सीधे थे??,फाइनल प्रैक्टिस 4 सितम्बर को सिम्मी मेम के सामने हुई उन्होंने देखा और कहा गुड जॉब। मै  और निशा कॉंफिडेंट थे की हम बहुत अच्छा कर रहे है,सब खुस थे बस शानू को छोड़  कर और उसे देख कर मै  ये समझ नहीं पा रहा इसे डांस में जीतने की चिंता है मुझे जवाब देने की यही सोच रहा था के फिर हमारे "दिल" की आवाज़ (अबे पहले जीत तो ले,फिर अपने आप पता चल जयेगा की क्या होगा)

                                              05 सितम्बर 2006  समय सुबह 10 :35 ................... तो आज टीचर्स डे है,सभी हमारे साथ के स्टूडेंट्स  टीचर्स बने थे छोटे छोटे बच्चे हमे सर-मेम ,दीदी-भैया एक ऑटोग्राफ देदो ऐसा कह रहे थे।  उन्हें उस चीज में खुशी थी और हम भी उस दिन एक सेलब्रिटी की तरह ट्रीट किये जा रहे थे।सबको उस दिन जेल की वर्दी उर्फ़ स्कूल ड्रेस से आज़ादी थी तब  उस दिन एक चीज का पता लग गया जिन लड़कियों को हम रोज़ क्लास में देखते थे उस दिन उन्हें देख के लगा जैसे मोहम्द कैफ बदल के कैटरीना  कैफ हो गयी हो बड़ी मुश्किल से उनसे ध्यान हटा कर मैंने परफॉरमेंस के लिए रेडी होना शुरू  किया। 

                             
                                                         स्कूल के बास्केट बॉल कोर्ट को स्टेज बना दिया गया था तीनो ओर बच्चों  से खचाखच भरा हुवा था,और चौथी तरह हमारे "judges" थे,सब अपनी अपनी परफॉरमेंस करते गए जैसे  अपनी बारी नज़दीक आती गयी पेट में तितलियाँ उड़ने लगी और मुरली और नेहा का परफॉर्मेंस देखा मुरली बीट्स से हट के अपना ही कुछ कर रहा था ये देख मेरा कॉन्फिडेंस और बढ़  गया।अभी मेरी खुशी  ढंग से हज़म भी नहीं हुई थी के हम लोग स्टेज पर थे मैंने पीछे मुड़कर शानू को देखा और फिर बगल में निशा को  परफॉरमेंस स्टार्ट हुवा गाने के बीच में एक 1 -2 मिनट का मेरा सिंगल अपना परफॉर्म करना था। वो मेरा कॉन्फिडेंस था,जवाब की जल्दी थी या उस दिन शयद दिन ही हमारा था परफॉरमेंस खत्म हुई,तालियों का शोर मेरे कानो में आज भी ताज़ा है शयद पहली बार मेरे लिए इतनी तालियाँ  बजी होंगी "judges" में मेरी इंग्लिश की मेम निर्मल सक्सैना जी भी थी उन्होंने कहा  मनीष तुम तो छुपे रुश्तम निकले उन्होंने खड़े होकर तालियाँ बजाई अब सिम्मी मेम हमे इशारों  में विक्ट्री साइन के साथ बता चुकी थी के हम जीत चुके है। 
                                                  
                                                     उस दिन पढ़ाई होनी नहीं थी क्युकी हम ही टीचर थे रिजल्ट पता होने के बाद शानू से पहले निशा  ने अपने प्रॉमिस किये बर्गेरों  की याद दिलाई उस दिन तो इतना खुश था की कोई कहता तो हलवाई ही बिठा देता वहां,हमारी कैंटीन वाली आंटी ने भी शायद डांस देखा या किसी से सुना उन्होंने भी कहा बहुत अच्छा था ये सुनकर में आंटी को नहीं शानू को देख रहा था के शयद कोई कमी रह गयी हो इम्प्रेस होने में तो पूरी हो जायेगी। जब सब अपने अपने बर्गर में लगे थे तो मैंने शानू से डायरेक्ट पूछा हाँ जी.... तो हाँ समझू????? वो चुप थी निशा  ने उसे कहा अब जवाब तो देना पड़ेगा मुझसे ज्यादा तो निशा दिलचस्पी ले रही थी शानू का मुँह निचे था उसने बर्गर भी नहीं खाया फिर मैंने दुबारा कहा बता ना क्यों मजे ले रही है।उसने दबी सी आवाज में हाँ  कहा बस उसका एक शब्द मेरे लिए बहुत था,मुझे समझ ही नहीं आया क्या करू  तब तक सिम्मी मेम ने मुझे बुलाया जीत की  बधाई देने के लिए में वापस लोटा तो शानू घर निकल चूकी थी।श्याम को उसके घर गया पर आज कुछ अलग था शानू में!!! वो चुप थी बात नहीं कर रही थी मै  ही आंटी को हमारी जीत की कहानी सुना रहा था,मैंने कोशिश की बात करने की पर फयदा नहीं हुवा तो मै  लौट आया। अगले दिन हमे जीत के तौर पर ऑक्सफ़ोर्ड की डिक्शनरी मिली जो मैंने आज तक नहीं खोली,अब गंजे के लिए कंघी किस काम की बाकी अब अपनी क्या तारीफ करू। 
                      
                                    अब घर हो या क्लास-स्कूल हर जगह अब यही बर्ताव था शानू का,अब वो ना ढंग से बात करती......नजरें  चुराती मै  भी नहीं समझा,ये सब रोज का रूटीन हो गया मै  दिल को वो समझा नहीं पा रहा था जो मुझे खुद समझ नहीं आ रहा था।ऐसे 11 दिन बीत गए जब नहीं रहा गया तो ब्रेक ख़त्म होने  के बाद उसे क्लास के बाहर रोका मेरे कुछ बोलने से पहले ही वो बोल पड़ी मनीष हम दोस्त ही अच्छे थे,अब ये सुनकर अजीब तो लगा उसे अंदर भेज दिया पर मै खुद को समझा नहीं पा रहा की ऐसा क्या हुवा फिर वाली हमारा "कम्बख़्त दिल" पता नहीं कहाँ-कहाँ से खयाल ढूंढ कर ला रहा था के "हाँ  बोलने पर कोई तोहफा नहीं दिया मैंने इसलिए तो मना नहीं कर रही,या मेरे किसी दोस्त ने मेरे बारे में कुछ उल्टा तो नहीं कह दिया"।
                                  
                                                       उस दिन मै  श्याम को उसके घर गया और उसे सिर्फ इतना कहा के हम अब हमेशा दोस्त रहंगे तब से आज 05 सितम्बर 2014 है,मैंने आज तक मना करने की वजह नहीं पूछी हमारी दोस्ती को 10 साल से ऊपर हो चुके है। आज भी मै उसे मुर्गी ही बुलाता और हाँ आंटी का अभी भी फेवरट हूँ पर अब रामु-काका नहीं बना पड़ता,कौन कहता है एक लड़का-लड़की अच्छे दोस्त नहीं हो सकते पर  मिशन इक़रार के चलते मैंने  बहुत कुछ सीखा डांस से प्यार हो गया मुझे यकीन नहीं तो ये सुनो स्कूल छोरड़ने के दो साल तक भी मैंने एनुअल-फंक्शन में परफॉर्म किया सबने बहुत प्यार दिया स्कूल में सब डांस के लिए तारीफ करने लगे।मै भगवान पूजा-पाठ ये सब नहीं मानता पर मेरा माना  है के कुछ है इस दुनिया में जो सबको एक-दूसरे से जोड़े हुवा  है और जो होता है अच्छे के लिए होता है......।

 ध्यन्वाद 
मनीष पुंडीर 












Wednesday, September 3, 2014

यादों के पन्नों से.....

   "मिशन इक़रार" दिल -डांस-दोस्ती।

.................................. मैं फिर कुछ पलो क लिए शांत हो गया फिर हिम्मत की और कहा की  मेरी गर्लफ्रेंड बनेगी,उसने मेरी तरफ देखा और कहा हाहाहाहाहा अच्छा मजाक है अब घर चले। उसका ये कहना भी लाजमी था मै  आखरी बार कब सीरियस हुवा था मुझे खुद याद नहीं अब मरता क्या ना करता मैंने कहाँ  सच में यार मजाक नहीं उसका रास्ता रोका  "फट तो अंदर से पूरी रही थी" पर आज ना कहता तो फिर कभी कह भी नहीं पाता मैंने कहा यार शानू मजाक नहीं सच में मुझे खुद नहीं पता के में तुझे कबसे पसंद करता हुँ तेरे साथ सब अच्छा लगता है,तुझे नहीं दीखता क्या तुझसे मिलने किसी न किसी बहाने  से तेरे घर आता हुँ  यकीन नहीं तो पाण्डेय और दीपिका से भी पूछ ले!!!! सब कुछ एक रटु  तोते की तरह एक सांस में बोल गया.

                   फिर सारा डर  पता नहीं कहा गया दिल काफी हल्का महसूस कर रहा था,आँखे उसी की तरह थी.....दिल तो साला ऐसे धड़क रहा था जैसे किसी ने कनपट्टी पर बन्दुक रखी हो।उसने मेरी तरह देखा और कहा के मै  भी तुझे पंसद करती हुँ  पर एक दोस्त की तरह.…मैंने तुझे  लेकर ऐसा कभी नहीं सोचा यार तू मेरा सबसे अच्छा दोस्त है और तू बहुत अच्छा है तुझे मुझसे भी अच्छी लड़की मिल जयेगी। मुझे लड़कियों का ये पसंद हो पर "ऐस  ए  फ्रेंड" आज तक पले  नहीं पड़ा।
                 खेर अब आधी उम्मीद खो चूका था पर एक अंदर की बात बताता हुँ  जब प्यार का भुत  सवार  होता है तो तब इंसान सबसे जयदा आशावादी होता है,वो सब सुनकर थपड़  मार के भी चली जाती तब भी दिल साला ये सोचता "ना" अभी नहीं कहा!!!! पर यहाँ थपड़  नहीं पड़ा।मैंने भी कहाँ तुझसे अच्छी नहीं तू ही चाहीये,अच्छा बोला ना??? बॉलीवुड कही तो काम आया...वो समझ गयी के आज ये जवाब लेकर ही जयेगा उसने कहा अच्छा मेको सोचना का टाइम तो दे मैंने कहा कितना टाइम चाइये उसने कहा 1 महीना {बताओ यार परपोसल  न हुवा आयुर्वेद की दवा  का कोर्स हो गया रिजल्ट एक महीने के बाद पता चलेगा} फिर वाही आया बीच में आशावादी दिल चलो एक महीने और काट लेंगे वैसे भी आधा ऑगस्ट निकल ही गया है।  
               उसके अगले दिन स्कूल में जाते ही सारी कहानी पाण्डेय और दीपिका को बताई मन तो था पूरी क्लास में चिल्ला दु  पर वो जयदा हो जाता,एक चीज अच्छी थी शानू मुझे लेकर बदली नहीं थी सब पहले जैसा ही था। फिर हम सब ग्राउंड में चले गए प्रेयर के लिए प्रेयर में एक अनाउंसमेंट हुई के 5 सितम्बर को "टीचर्स डे" पर सभी हॉउस में ग्रुप डांस का कॉम्पिटिशन होगा अपने नाम अपने अपने हाउस हेड्स को श्याम तक दे देना। अब ये सब सुनके शानू ने अपना नाम डांस के लिए दे दिया अब जब भगु  की कृपा से हम एक ही  हाउस में थे तो हम भी कूद पड़े डांस के मैदान में अब नाम क्यों दिया इतना तो समझ ही लो......सबके नाम श्याम तक आ गए अब किस्मत भी फुल मजे लेने के मूड में थी मेरे इलवा मेरे हाउस में 9 लड़कियों के नाम थे। अब भइया करो या मरो  वाले हालतो में हमने कर के मरना  जयदा बेहतर समझा।
           सब हाउस लग गए प्रैक्टिस में मेरी ही क्लास से मेरा दोस्त मुरली और नेहा भी मेरे कॉम्पिटिशन में था डांस भी अच्छा करते  थे,उनकी प्रैक्टिस शानू ने देखी शायद वो बंटी -बबली के नच  बलिए गने पर डांस कर रहे थे। यहाँ दो धारी तलवार लटक रही थी एक शानू को इम्प्रेस करना था दूसरा हमारी हाउस हेड "सिम्मी मेम" उनका एक ही कहना था 100 % एफर्ट लगा दो जीत ही चाहिए,यहाँ फार्मेशन अलग थी मै  और निशा (मेरी डांस पार्टनर) फ्रंट में थे और बाकि 8 लड़कियाँ  पीछे शानू भी पीछे ही थी हमारा सांग था "सुनो गौर से दुनिया वालो,चाहे जितना जोर लगा  लो ... वैसे में निशा को सब बता चूका था अपने और शानू के बारे में अब डांस पार्टनर थी बताना तो बनता थ। शानू उनकी प्रैक्टिस देख कर आई तो मुह लटका था मैंने कहा क्या  हुवा उसने कहा  हम नहीं जीतने वाले वो लोग बहुत अच्छा कर रहे हैं। 
        अब जिसके लिए इतना सब कर दिया उसका मुँह लटका कैसे देख लेते उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा अब तेरे लिए जीतना ही पड़ेगा उसने कहा नहीं जीत सकते हम भी पुरे फिल्मी थे ऊपर से राजपूत कहा देख जीतूंगा तो तुझे  महीने भर की जगह मेरा जवाब डांस रिजल्ट के तुरंत बाद देना होगा इतने में पीछे से निशा  की आवाज आई और हम सबको पार्टी भी और अब प्रैक्टिस करलो वरना जीतोगे कैसे?? सब हँस रहे थे पर शानू ने कुछ नहीं कहा फिर कुछ सोचा और कहा ठीक है जैसे ही उसे यकीन हो के हम जीत ही नहीं सकते। ............... टू  बी  कॉन्टिनुएड
………… आगे की कहानी पढ़ने के लिए थोड़ा सब्र रखे तब तक के लिए इस पर कॉमेंट करें 
:मनीष पुंडीर 

















बहनें...

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ है,अपने दिल की कहने का हक़ है... बस इसी सोच को बढावा देने का ये प्रयास है.                ...