Tuesday, September 2, 2014

यादों के पन्नों से.....

मेरा पहला "मिशन इक़रार"


उसका नाम शानू था प्यार से उसे में मुर्गी बुलाता था और वो मुझे मुर्गीचोर हाँ माना  बचकाना लगता है पर तब  हम कौनसा बड़े थे?? ,सातवी से साथ पढ़ रहे थे अब  हम दसवी पास करके ग्यारवी (कॉमर्स) में आ चुके थे…तीन साल क्लास में साथ थे किस्मत का संजोग देखो दोनों के पापा फ़ौज में थे तो हमे एक ही जगह रहने को सरकारी घर मिले थे. हां उसके साथ वक़्त बिताना अच्छा लगता था किसी न किसी बहाने में उसके घर पहुंच ही जाता था.…  कभी किताब लेने के बहाने  कभी वापस करने,उसके साथ लड़ाई बी करता था तो अजीब सी खुशी  मिलती थी..

प्यार तो नहीं कह सकता पर एक लगाव था उसके साथ,क्लास में मै  बाद में आता था मेरी नजरे पहले पहुचती थी उसे देखने को वो भी पूरी थी.…मेरे लिए हमेशा रेडी  रहता  एक्स्ट्रा पेन,घर से मेरे लिए बनाया टिफिन। अपनी अच्छी कट रही थी,लोग कहते है कही ध्यान नहीं लगता पर यहाँ  तो उसके साथ सब कुछ ऐसे याद हो रहा था जैसे इंटेल की प्लेटिनम चिप मेरे दिमाग में डाल  दी हो.…उसके घर में आंटी का भी  में खास हो गया "ख़ास" सुनने  में कितना अच्छा  लगता है ना ऐसे ही नहीं बन जाते खास कुछ पाने क लिए बहुत कुछ खोना  पड़ता है बस जय्दा  नहीं एक-दो बार उनके सब्जी क थेले घर तक ले जाओ,उनके छोटे के जन्मदिन पर पूरा घर सजाओ,अपने घर में भले ही कितनी कामचोरी करो पर वहाँ  कोई कसर न छोरड़ना  उनका दूध  का दबा लाओ इन शार्ट उनके घर का "रामु काका" बन जाओ..

अब में उस अहसास को पचा नहीं पा रहा था तो कहते है ना के जहाँ  सब बेकार वहाँ  याद आये  यार उस वक़्त मेरी दो खास सहेलिया कह-लो  पाण्डेय और दीपिका उनको अपने  हाल-ए-दिल बेया कर दिया फिर क्या नये  नये  तरीके ढूंढे जाते हमारी टाँग  खीचने के अब क्लास में  आधा दर्ज़न को पता चल गया था और शयद उसे भी तभी आज ब्रेक में मेरे लिए लंच नहीं आया.मै  समझा नहीं के पता होने की खुशी मनाऊ या भूखे  रहने का गम हिम्मत करके पूछा आज खाना क्यों नहीं लायी तो सामने से जवाब आया के आज मेरा वर्त है.तो माँ ने टिफिन नहीं बनया ये सुनके में खुद के दिल को तस्सली के डोज़ दे रहा था "देखा पागल तू क्या क्या सोच रहा था वर्त है उसका" बस इतना सुनके में उस दिन तस्सली में ही खुस रहा.

मेरी वो दोनों सहेलिया भी मिशन इकरार में लगी थी पाण्डेय बोल आई उसे के मनीष कह रहा था वो तुझे पसंद करता है और तेरे साथ टाइम  स्पेंड करना अच्छा  लगता है उसे.....जब ये सब बाते हो रही थी तो में अपनी बेंच पर बैठा तिरछी नजर से सब देख रहा था वो तो बोल के निकल गयी उस दिन क्लास में सब अच्छा  लग रहा था में घंटो दिवार को देखता रहा कॉपी क पीछे उसके और अपने नाम के साथ  "FLAMES" निकलता रहा था.मेरे 250 ग्राम चेहरे पर 440 वाट की स्माइल थी तो कोई अँधा भी देख लेता।

तो फिर वो मुस्कान  हमारे एकाउंट्स वाले  अरोरा सर जी से कैसे बचने  वाली थी,बस फिर क्या अचानक मेरे कानो में एक तेज़ आवाज़ आई और मेरे खयालो  की दुनिया से निकला ही था के सामने प्रॉफिट न लोस्स अकाउंट उन्होंने कहा जरा ये बैलेंस शीट मैच करके दिखाओ और में उनकी शकल ऐसे देख रहा जैसे वो केजरीवाल हो और मै  कांग्रेस और उन्होंने मुझसे लोकपाल बिल मांग लिया हो......पर इन हालातो में दो लोग बड़े खुस थे...सही पहचाना जी मेरी दोनों सहेलियाँ क्युकी उन्हें सब पता था अब सर को कौन समझता यहाँ  खुद के दिल का  हिसाब खराब है तो ये बैलेंस शीट कहाँ  मैच होगी,मैंने निचे देखा और सर को कहा सर मुझसे नहीं होगी फिर क्या सब हस रहे थे और मर तो पहले से ही हस रहा था.

 अगले ही पल में क्लास के बाहर  था पर वो ऑर्बिट वाली धिनचाक स्माइल अभी भी मेरे साथ थी,अजीब सी हिम्मत थी उस दिन मेरे अंदर जैसे की मुझे पता हो सब अच्छा होने वाला है।  उस दिन स्कूल खतम होने के बाद शानू के साथ ही घर निकला जिसको पसंद करते हो उसके साथ तुम पैदल पूरी दुनिया घूम सकते हो,रस्ते में दिल और दिमाग की लड़ाई के बीच रेफरी बना हुवा था फिर अचानक ही जब दिल जीता और दिमाग चारो खाने चीत्त हो गया तो मैंने शानू को रोका और कहा में तुझे पसंद करता हुँ,उसने कहा तो क्या में भी तुझे पसंद करती तू मेरा सबसे अच्छा दोस्त है.... मैं फिर कुछ पलो क लिए शांत हो गया फिर हिम्मत की और कहा क मेरी गर्लफ्रेंड बनेगी। .....................टू  बी  कॉन्टिनुएड
………… आगे की कहानी पढ़ने के लिए थोड़ा सब्र रखे तब तक के लिए इस पर कॉमेंट करें 
:मनीष पुंडीर 



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