हम सब अपनी जिंदगी बेहतर करने में लगे है, अपने लिए अपनों के लिए। न जाने कितने लोग मेरे साथ सहमत होंगे पर कभी कभी ज़िम्मेदारियों और ख्वाइशों के तराज़ू को बराबर करते करते आप एक वक़्त पर आकर टूट जाते हो। जब आप सब कुछ ठीक करने में लगे होते ही पर कुछ भी ठीक नहीं हो रहा होता, बिल्कुल वैसा एहसास जब आप रस्सी के दो छोर पकड़ के पास लाने की कोशिशें करते रहते हो पर वो एक दूसरे से अलग जा रहे होते है।
अच्छे बने रहना भी आसान नहीं है, आप कभी कभी अच्छे बन कर भी थक जाते हो। जब हर बार आपकी सरलता को लोग बेवकूफी समझने लगते है, तो आप फिर ख़ुद से ही चिड़ने लगते हो की क्यों हूं मै ऐसा ???. वो भाव आप किसी के साथ बांट नहीं सकते, कोशिश भी करोगे तो सामने वाला उसे उसी तरह समझे ये न के बराबर संभावनाएं होती है।
अच्छे लोगों की आदत होती है उन्हें हंसते चहरे देखना अच्छा लगता है, किसी की खुशी के लिए अगर उन्हें कभी अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर भी जाना पड़े तो वो जाते है। पर मतभेद तब शुरू होते है जब उन्हें उनके इस काम के लिए बाध्य समझा जाता है, और सामने वाला उसकी आदत डाल लेता है।
हर कोई चालाकी समझता है इसलिए हम इंसान है, सब सच्चे होते तो हम जानवर होते। आपको नहीं लगता आधी जिंदगी तो हम सिर्फ़, अपनी बात सही साबित करने के लिए लड़ते रहते है। भले उस बीच के समय में बाकी चीज़े बिगड़ी रहे, क्या आखिर में सच में आपकी जीत होती है ???
कितना मुश्किल है ये समझना??? के दो लोगों की बीच बातों से जायदा खमोशी चुबती है। उनमें से एक कोशिश कर कर के थक जाता है, बाकी दूसरा उसे हार जीत का खेल समझे बैठा है। हर इंसान के अंदर एक ज्वालामुखी है जो ख्यालों के लावे से भरा है, वो ख़्याल जो उसे डराते है उसकी नाकामी से..... उसके अपनों से दूर होने से.... वो ख्याल जिसमें वो चिल्ला चिल्ला के रोना तो चाहता है पर वो भी नहीं कर सकता..... वो ख़्याल जो रोज़ तकिए पर उसके साथ रात घंटो बातें करते है।
दिक्कत सारी उस इमोश्नल फूल मन की है जो दूसरों को रोते नहीं देख सकता, पर साला खुद भी किसी के सामने नहीं रो सकता। जरूरी नहीं जो इंसान हमेशा हंसता है वो अंदर से खुश हो, अक्सर दिया तले ही सबसे जायदा अंधेरा होता है। सबको अपनी कहनी तो है पर सिर्फ़ अपनी कहनी है, कोई किसी की सुनना नहीं चाहता।
कुछ चुनिंदा लोग आज भी है जो एक इमोशनल सीन देख के रोने लगते है, जिन्हें लोगों के एहसासों से असल में फ़र्क पड़ता है। जो इस सभ्य समाज का हिस्सा नहीं बनना चाहते, जो लोगों को रंग रूप, धर्म जात, हैसियत और औक़त के मापदंडों में नहीं तोलते। पर ये भी सच है के सबसे जायदा इन्हीं लोगों में ये ज्वालामुखी पाया जाता है।
कभी सोचा है उस ज्वालामुखी का अंत क्या होता है ??. ये ख़्याल मैं आप पर छोड़ता हूं क्युकी हम में से ही कोई उस अंदर के ज्वालामुखी को पाले बैठा है, या हम में से ही कोई उसकी वजह भी है मानों या न मानों....
:- 🖋 मनीष पुंडीर
3 comments:
Osm line sir
Motivational lines 👍👌👌👌
धन्यवाद
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