Thursday, August 19, 2021

बहनें...

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ है,अपने दिल की कहने का हक़ है... बस इसी सोच को बढावा देने का ये प्रयास है.


          

                    ये सिर्फ़ ये सोच के ना पढ़े कि राखी है इसलिए ये लिख रहा हूं, बस ये इसलिए भी है शायद आप भी अपनी बहनों को ये भेज सके और अपने भाई वाले इमोशन को शब्दों में बयां कर सकें। बहन छोटी हो या बड़ी एक चीज़ दोनों बातों में एक सी रहती है और वो है "केयर" , उन्हें दूसरी मां कहना या पहली दोस्त कहना भी गलत नहीं होगा। बचपन में आपके राज़ संभाल के रखने वाली, शादी पार्टी में क्या पहनना है ये बताने वाली, आपके साथ WWF खेलने वाली। रिमोट को लेकर हर बार लड़ती थी, उनका कोई भी काम करवाने के लिए हमेशा रिश्वत लगती थी। अपना खत्म करके उनकी प्लेट से खाना और उनके साथ मिलकर हर बार त्यौहार पर घर साफ करना और सजाना।

 

                  बहनों की बातों में सही गलत की छन्नी नहीं होती कभी, वो आपके सही तो सपोर्ट भी करेंगी और गलत होने पर शिकायत लेकर पापा के पास भी पहुंच जाएंगी। मैं बहुत लकी हूं क्योंकि मेरी तीन बहनें है, पापा आर्मी में थे तो उनका घर आना साल भर में कम ही होता था। मेरा बचपन मां और तीनों बहनों के साथ बीता जिससे मुझे लड़कियों की इज्ज़त क्यों करनी चाइए ये समझने में मदद मिली, कहीं न कही बहनें आपको एक बेहतर इंसान बनने में भी मदद करती है। आपके कहानी किस्से अलग हो सकते है, पर वो प्यार और लगाव सब जगह एक सा ही रहता है।

 

                    भले ही हम भाई कितना भी लड़ते हो, बहनों का मज़ाक उड़ाते हो या उन्हें ये चिड़ाते हो कि मां मुझे ज्यादा प्यार करती है। लेकिन जब उन्हें कोई कुछ बोले या परेशान करें तो फिर आप सुपरमैन हो जाते हो, वैसे तो हम लड़को को समझाया जाता है कि हम रोते नहीं है पर बहन की शादी में किसी कोने में सबसे छुप कर रो रहे होते है। बेस्ट चीज़ ये है आपको बहनों के सामने दिखावा नहीं करना पड़ता, वो आपकी उन सभी बुरी आदतों को जानती है जो आप इस सभ्य समाज में कर नहीं सकते। तो सिर्फ़ राखी पर नहीं जब भी मौका मिले अपनी बहनों को पास बिठाओ और उन्हें बताओ की उनके होने से आप आज एक बेहतर इंसान हो, साथ ही ये भी बताना की वो दुनियां की बेस्ट बहन है।


:-🖋 मनीष पुंडीर 



Saturday, February 6, 2021

आत्मसंदेह



              ये शब्द सुनने में अजीब लग रहा होगा पर ये हमारे साथ हर वक्त साथ रहता हैं, सबके घर में कुछ ऐसी चीजें सिखाई जाती हैं कि हमें खुद पर संदेह होने लगता कि हम सही हैं या गलत। आप में से कुछ इससे अंधविश्वास से जोड़ कर भी देख सकते हैं, जैसे आपने पूजा करने को दिया जलाया और वो थोड़ी देर बाद बुझ गया जब की उसमें तेल की मात्रा भी पर्याप्त थी। तो आपको घरवालों से सुनने को मिलता हैं तूने मन से नहीं जलाया होगा, इस पर आप खुद के बारे में अंतर् मन में बात करते हैं क्या सच में ??? ऐसा कुछ है या ये महज़ एक सामान्य बात है।

     आत्मसंदेह जन्म देता हैं आत्ममंथन को जो आपके बहुत सारे प्रश्नों का उत्तर पाने में आपकी सहायता करता हैं।हर कोई अपनी कहानी में हीरो होना चाहता हैं,पर असल में वो कितना उस पर खरा उतरता हैं यही मंथन का विषय हैं। ये मंथन आपको एक नजरिया देता हैं जिसमें आपको ये समझ आने लगता हैं कि कौन से वो पक्ष हैं जिन पर आपको ध्यान देना हैं।आप जाने अनजाने ये आत्मसंदेह करते हैं, अपने मन में दूसरों से तुलना करके या जब चीज़े आपके विपरीत जा रही हो। 

          कुछ घरों में आपकी छींक से भी आपको अच्छा बुरा आंका जाता हैं,कभी किसी नए काम कर बारे में बात हो और आप छींक दो तो सबका ध्यान आपकी तरफ़ ही केंद्रित हो जाता हैं। हमारा मन ही इन चीज़ों को बढ़ावा देता हैं,आप खुद को ही आंकते रहते हैं की मैं इन मापदंडों पर खरा उतरता हूं की नहीं। आत्मसंदेह अच्छा बुरा दोनों हो सकता हैं वो सब आप पर निर्भर हैं कि आप उसे कैसे लेते हैं।कुछ इस बात पर यकीन कर लेते हैं कि हम ही शायद बदनसीब हैं। दूसरी ओर बाकी खुद को ही चुनौती देते हैं नहीं हम इस सोच को बद लेंगे, आखिर में जब वो उस संदेह को पार पा लेते हैं तो और बेहतर महसूस करते हैं।

          आखिर में इतना कहूंगा आत्मसंदेह आपको मंथन करवाएं तो अच्छा हैं पर इसके विपरीत आप खुद पर इसे हावी होने देंगे तो फिर आप मानसिक तौर पर कमज़ोर होते रहेंगे।

Friday, December 25, 2020

ख़ुशी का तराज़ू।

ख़ुशी का तराज़ू....

 दिल को कहां सोचना आता है??
 वो तो बस प्यार चाहता है,
 फ़र्क फितरत का ही तो है वरना,
 कितना मुश्किल है मासूमियत बनाए रखना??

कितनी महंगी होती है खुशियां ??
इस सवाल के सबके अपने मुताबिक जवाब है...
वो जो आपके लिए फ़ालतू हो,
आज भी शायद वो कुछ किसी के लिए  ख़्वाब है।

क्यों नापतोल करना खुशी में,
पैसा लगता है क्या बेफिक्र हंसी में??
सर्दी में धूप की गरमाहट,
मां के कदमों की आहट..
नमकीन से मूंगफली चुन के खाना, 
नहाते वक्त गाना गुनगुना...
ढूंढने निकलोगे तो हज़ार वजह है,
वरना लोग खुश होने के लिए....
आज भी सही वक्त के इंतज़ार में लगे है।

Tuesday, December 22, 2020

तुलना

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ हैं,अपने दिल की कहने का हक़ हैं... बस इसी सोच को बढ़ावा देने का ये प्रयास हैं.


                   बहुत दिनों बाद लिख रहा हु, इस बीच सब बदल गया हैं। मन स्थिर नहीं था तो इसलिए लिखने को बहुत था पर सही शब्द नहीं समझ आ रहे थे, आज थोड़ा धूप में बैठे थोड़ा दिमाग खुला तो लौट आए फिर से अपनी सुना-ने। आजकल एक चीज आपको सबके पास मिल जाएगी चाहे वो नौकर हो या मालिक बड़ा हो या बच्चा "इंटरनेट" , अब इसे जियो की मेहरबानी भी कह सकते है खैर मैं भी अपना समय उसी पर खराब कर रहा था तो एक विडिओ मे एक बात सुनने को मिली और वो दिल को छु गई। 

                  एक व्यक्ति थे  KBC में अपने अनुभवों के बारे में बता रहे थे , उन्होंने एक बात कही के दुख हमेशा तुलना करने से आता हैं। उसी बात को थोड़ा आगे बढ़ा कर आप तक बताने का प्रयास हैं, आजकल ये तो सब जानते हैं की आपको हर बात पर एक तराज़ू में तोला जाता हैं। अब वो बराबरी आपके परिवार वाले आपके साथ करे या आप खुद अपने मन के साथ , शर्मा जी का लड़का इतने मार्क्स लाया... उसके पास वो वाला फोन मेरे पास ये... उसकी जिंदगी तो मौज में कट रही है हमारी ही सही नहीं जा रही और आखिर में सबकी एक ही सोच अपनी तो किस्मत ही खराब हैं। 
                   
                  आपका ये सोचना शायद आपके अंदर ही एक हीन भावना भर दे, आइए इसे एक उदाहरण से समझे आप सबके घर में दूध आता हैं। उसी दूध से  घी दही मक्खन खोया पनीर सब बनता हैं पर सबकी बनने की विधि और समय अलग अलग हैं, पर आप ये सोचे की दूसरे के घर में इस दूध से घी बन रहा हैं पर मेरे घर में क्यू नहीं बन रहा ??? तो दोस्त दुख और कमी बाकी जगह नहीं आपके अंदर ही हैं। इसके लिए मैने बहुत पहले दो लाइनें लिखी थी.. 
  

              "दूसरों के महलों को देख , मैं अपनी झोपड़ी को कोसता रहा.. 
               धूल मेरी आँखों पर थी और मैं आई-ना पोंछता रहा "


              तो रिश्ता भाव कोई भी हो ये तुलना करना ही आपके दुख का कारण हैं, सबके अपने अपने सुख दुख हैं अपनी अपनी कहानी हैं। कोई घर की लक्ष्मी तो कोई घर की नौकरानी हैं, कोई महलों में भी अकेला हैं तो कोई अपने मकान की सेठानी हैं । मैं सही वो गलत.. हर बार मैं ही क्यों ??  ये सब सोच रखने से हमेशा आपका ही नुकसान होगा तो अपने जीवन को बेहतर बनाने की कोशिशें में लगे रहे। बाकी समय सबका आता है आपको जो जरूरी लगता है वो नहीं मिलता पर जो आपके लिए जरूरी होता है नसीब आपको वो देता है। तो तुलना करना बंद करे.. 

धन्यवाद 
🖋 मनीष पुंडीर 

(पढ़ के अच्छा लगे या बुरे लगे नीचे अपनी राये जरूर दे और दोस्तों के साथ भी शेयर करे ताकि मुझे और बेहतर करने की समझ मिले )

Thursday, October 8, 2020

समाज और समझ


              
ये सिर्फ़ एक लेख नहीं चीख है उन लोगों कि जो समाज के हिसाब से नहीं चलते तो उन्हें गलत कह दिया जात है। अपने यहां एक बहुत बड़ी समस्या है कि सबको अपने काम से मतलब नहीं है दूसरे क्या कर रहे है इसकी चिंता अधिक है।अपने घर में दिक्कतें चल रही हो पर परेशानी इस बात से है कि पड़ोस में लोग क्यों खुश है। 

                   सच कहूं तो ये एक मिथ्या भर है कि लोग क्या सोचेंगे अगर आप अपने हिसाब से चलेंगे तो, अब वो तो लोग सोचेंगे उन्हें ही करने दो क्यूंकि आप उनको खुश करने नहीं आए हो सबसे पहले ख़ुद की खुशी बहुत जरूरी है। इस बात को थोड़ा और समझते है अगर आजकल कोई लड़की खुली विचाधारा की है, सबसे हसीं खुशी बात करती है तो उसे चरित्र प्रमाण पत्र देने वाले खूब मिल जाएंगे।

                       हम आप बुरे नहीं है बुरे वो समाज के ठेकेदार जिन्हें अपनी बहु बेटियों का घुंघट तो प्यारा है, पर साथ ही अपने कार्यक्रम में लड़कियों से नाच करवा कर वो अपनी शान समझते है। ये फायदे के सगे है कब आपको धर्म,जात आपकी इज्ज़त का हवाला देकर अपना काम निकलवा लेंगे और आपको पता भी नहीं चलेगा। जिस दिन आप अपने अंदर से ये संकोच का भाव निकाल दोगे के समाज क्या सोचेगा, बस उसी दिन से जीवन में आधी दिक्कतें खत्म। 

                     हम कमज़ोर नहीं है हमारी मानसिकता कमज़ोर है, जो कभी हमें धर्म तो कभी जात के तराज़ू में बिठा देती है। पढ़ने में शायद अच्छा ना लगे पर ये घर से ही शुरू होता है, आपको पहले ही समझा दिया जाता है आपके दायरे क्या है।हमारे बड़ों कि ये समस्या है पहले वो हमे अच्छा पढ़ा लिखा देखना चाहते है, फिर हम अपनी पढ़ी लिखी विचारधारा को उनके सामने रखते है जिसमें कोई भेदभाव नहीं है तब वो हमें कहते है जायदा ही पढ़ लिख गया है जो हमें सीखा रहा है। 

:- मनीष पुंडीर 

Saturday, September 19, 2020

घर से दूरी.......


   
                   
         ये सच्चाई है के इंसान के पास अगर सब पहले से हो तो उसकी अहमियत नहीं रहती, जैसे आप एक ऐसे घर में पैदा हुए हो जहां तीन वक़्त का खाना और सर पर छत है तो उसका आभार रखिए। उन चीजों को अपनी किस्मत मान लेना, सही नहीं है क्युकी उसमें आपका योगदान कितना है वो अहमियत रखता है। 

                    घर से दूर रहना भी ज़रूरी है, आप वो सीखते है जो वहां रहकर नहीं सीखा जा सकता। अगर में आपसे ये बात कहूं के आपको एक बेहतर इंसान बनाने के लिए ये फायदेमंद है तो गलत नहीं होगा, घर से दूरी आपको बहुत कुछ सिखाती है। फिर चाहे वो शुरवात में अधपके चावल  हो या फ़िर वो कपड़े धोने का पहला अनुभव, आत्मनिर्भर बनने की पहली सीढ़ी यही है। कभी कभी आप हताश होते हो प्याज़ काटते वक़्त वो आंसू सिर्फ़ प्याज़ की वजह से नहीं होते, एक वक़्त तो सब बेमानी लगता है और घर जाना मोक्ष की भांति प्रतीत होता है। 

                   अनुभव की बात करू तो आप बहुत कुछ सीखते हो, जो सिर्फ़ खाना पकाने या कपड़े धोने तक सीमित नहीं है। ये दूरी आपके व्यक्तित्व को भी निखारती है, आपको नए अनुभव भी होते है जो कि आपको बेहतर इंसान बनने में सक्षम करते है। आप परिवार की अहमियत समझते है, पैसे की भी क़दर महीने के वो आखरी दस दिन सीखते है जब सिर्फ़ इंतज़ार होता है तनख़ा आने का इंतजार। आप दोस्त बनाते हो सही गलत का अनुभव भी करते हो, कुछ फ़ैसले गलत भी होते है जो आपकी समझ को और बढ़ाते है। 

             हिम्मत चाहिए होती है उन घर से दूर बढ़ते क़दमों में जब आप घर के लिए घर से दूर जा रहे होते हो, जिम्मेदारियों का बस्ता और उसमें ढेर सारे यादों के पल लिए निकल पड़ते है अपनी मंजिल की तलाश में। ये सुनने में जितना आसान लगता है उतना ही दिल मजबूत करना पड़ता है, ये बिल्कुल वैसा ही की किसी घने जंगल में आपको अकेला छोड़ दिया है। हर दिन एक नई कहानी होती है कभी कभी आप निराश होते है अकेलापन भी चुबता है, फ़िर आपको ही अपने आपको संभालना होता है आखिर में यही सच्चाई है।


            मेरा ये मानना है कि आपको आत्मनिर्भरता की सही परिभाषा समझनी है तो घर से दूर रहने का अनुभव एक बार जरूर ले, क्युकी ये आपको खुली छूट भी देगा और आपकी परवरिश को भी आजमाएगा। यकीन मानिए आज शायद जों घर में रहकर आपको सामान्य लग रहा है कि ये तो सबके पास होता है, उस "सामान्य" की अहमियत तब समझ आएगी। आपको जो मिला है उसका आभार रखिए और घर से दूर है तो मेरा सैल्यूट स्वीकार कीजिए, हर किसी के बस की बात नहीं होती ये निभाना बाकी तो सबका वक़्त गुजर ही जाना है...

:-🖋 मनीष पुंडीर 

Sunday, September 13, 2020

ज़ुबान

              ऐसी बानी बोलिए,मन का आपा खोय |
              औरन को शीतल करे,आपहु शीतल होय |


             ये बचपन में सबने पढ़ा होगा, पर आजतक कोई इसे सच में अपना पाया है??. सबके पास दूसरों को देने के लिए हज़ार सुझाव है,पर ख़ुद के लिए वो कितने लागू होते है यही समझने कि बात है। सब एक अच्छी जिंदगी चाहते है अपनी औकात को हैसियत में बदलने में जुटे है, पर आपका बर्ताव आपको बोली आपका मूल्य दर्शा देती है। आप जिस तरह से लोगों के साथ व्यवहार करते है,उससे आपकी परवरिश और आपका व्यक्तित्व उजागर हो जाता है। 
          
            इसके मूल को समझते ही आपकी बोली हर चीज़ में चार चांद लगा सकती है, फिर चाहे वो आपका काम हो या मेलभाव। कोई नहीं चाहता कि कोई उससे धुत्कारे या बात बात पर नीचा दिखाए, हमेशा याद रखिए दूसरों को हमेशा वैसे ही मिलिए - बोलिए जैसा आप चाहते है लोग आपसे बात करें। बड़े बूढ़े कह गए है "तलवार का घाव एक बार को भर सकता है, पर बोली का घाव कभी नहीं भरता", फिर चाहे वो गुस्से में बोले गए शब्द हो या किसी को जानबूझ कर आहत करने की मंशा। 

              बोलने की कला का अद्भुत उदाहरण आप महाभारत में कृष्ण जी से सीख सकते है, जिन्होंने बिना लड़े पांडवों को विजय दिलवाई। अपने आसपास देखंगे तो पाएंगे कि जिस किराने वाले की दुकान मोहल्ले में सबसे ज्यादा चलती है वो सबसे प्यार से बात करता है, कुछ लोग खुद ब खुद आपकी अच्छे लोगों की लिस्ट में अा जाते है क्युकी वो सिर्फ़ अच्छे से बात करते है। इसका सीधा सम्बन्ध आपकी सोच से होता है जैसा आप सोचते है वैसा ही आप दूसरों तक पहुंचाते है, ये प्राकृतिक है इसे आप बदल नहीं सकते। 

             अगर कभी मौका मिले तो अपनी दादी नानी या किसी भी बूढ़े इंसान के साथ बात करने की कोशिश करना, वो हमेशा आपको प्यार से बात करते हुवे मिलेंगे क्यूंकि वो जीवन के सारे अनुभव कर चुके है और वो समझते है बोली गई बातों की अहमियत। आपके बोली गई अच्छी बात क्या पता किसी की हिम्मत बन जाए, वहीं किसी का मज़ाक बना कर आप शायद किसी को डरपोक बना सकते है। जैसे जीवन एक है उसे अच्छे से बिताए तो मेरे दोस्त जुबान भी एक है अब उसे नमक बनाना है या शक्कर ये आप पर है........
             

:-🖊 मनीष पुंडीर 

बहनें...

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ है,अपने दिल की कहने का हक़ है... बस इसी सोच को बढावा देने का ये प्रयास है.                ...