Friday, September 5, 2014

यादों के पन्नों से........

                                      "मिशन इक़रार" फाइनल राउंड!!!!!



.................... जैसे शानू को  यकीन हो के हम जीत ही नहीं सकते।चलो अब महीने भर इंतज़ार तो नहीं करना पडेग़ा,सभी लगे पड़े थे अपनी अपनी प्रैक्टिस में घर में जन्मदिन पर कूदना अलग बात है पर पुरे स्कूल क सामने डांस ये थोड़ा टेढ़ी खीर था पर हम कौनसा सीधे थे??,फाइनल प्रैक्टिस 4 सितम्बर को सिम्मी मेम के सामने हुई उन्होंने देखा और कहा गुड जॉब। मै  और निशा कॉंफिडेंट थे की हम बहुत अच्छा कर रहे है,सब खुस थे बस शानू को छोड़  कर और उसे देख कर मै  ये समझ नहीं पा रहा इसे डांस में जीतने की चिंता है मुझे जवाब देने की यही सोच रहा था के फिर हमारे "दिल" की आवाज़ (अबे पहले जीत तो ले,फिर अपने आप पता चल जयेगा की क्या होगा)

                                              05 सितम्बर 2006  समय सुबह 10 :35 ................... तो आज टीचर्स डे है,सभी हमारे साथ के स्टूडेंट्स  टीचर्स बने थे छोटे छोटे बच्चे हमे सर-मेम ,दीदी-भैया एक ऑटोग्राफ देदो ऐसा कह रहे थे।  उन्हें उस चीज में खुशी थी और हम भी उस दिन एक सेलब्रिटी की तरह ट्रीट किये जा रहे थे।सबको उस दिन जेल की वर्दी उर्फ़ स्कूल ड्रेस से आज़ादी थी तब  उस दिन एक चीज का पता लग गया जिन लड़कियों को हम रोज़ क्लास में देखते थे उस दिन उन्हें देख के लगा जैसे मोहम्द कैफ बदल के कैटरीना  कैफ हो गयी हो बड़ी मुश्किल से उनसे ध्यान हटा कर मैंने परफॉरमेंस के लिए रेडी होना शुरू  किया। 

                             
                                                         स्कूल के बास्केट बॉल कोर्ट को स्टेज बना दिया गया था तीनो ओर बच्चों  से खचाखच भरा हुवा था,और चौथी तरह हमारे "judges" थे,सब अपनी अपनी परफॉरमेंस करते गए जैसे  अपनी बारी नज़दीक आती गयी पेट में तितलियाँ उड़ने लगी और मुरली और नेहा का परफॉर्मेंस देखा मुरली बीट्स से हट के अपना ही कुछ कर रहा था ये देख मेरा कॉन्फिडेंस और बढ़  गया।अभी मेरी खुशी  ढंग से हज़म भी नहीं हुई थी के हम लोग स्टेज पर थे मैंने पीछे मुड़कर शानू को देखा और फिर बगल में निशा को  परफॉरमेंस स्टार्ट हुवा गाने के बीच में एक 1 -2 मिनट का मेरा सिंगल अपना परफॉर्म करना था। वो मेरा कॉन्फिडेंस था,जवाब की जल्दी थी या उस दिन शयद दिन ही हमारा था परफॉरमेंस खत्म हुई,तालियों का शोर मेरे कानो में आज भी ताज़ा है शयद पहली बार मेरे लिए इतनी तालियाँ  बजी होंगी "judges" में मेरी इंग्लिश की मेम निर्मल सक्सैना जी भी थी उन्होंने कहा  मनीष तुम तो छुपे रुश्तम निकले उन्होंने खड़े होकर तालियाँ बजाई अब सिम्मी मेम हमे इशारों  में विक्ट्री साइन के साथ बता चुकी थी के हम जीत चुके है। 
                                                  
                                                     उस दिन पढ़ाई होनी नहीं थी क्युकी हम ही टीचर थे रिजल्ट पता होने के बाद शानू से पहले निशा  ने अपने प्रॉमिस किये बर्गेरों  की याद दिलाई उस दिन तो इतना खुश था की कोई कहता तो हलवाई ही बिठा देता वहां,हमारी कैंटीन वाली आंटी ने भी शायद डांस देखा या किसी से सुना उन्होंने भी कहा बहुत अच्छा था ये सुनकर में आंटी को नहीं शानू को देख रहा था के शयद कोई कमी रह गयी हो इम्प्रेस होने में तो पूरी हो जायेगी। जब सब अपने अपने बर्गर में लगे थे तो मैंने शानू से डायरेक्ट पूछा हाँ जी.... तो हाँ समझू????? वो चुप थी निशा  ने उसे कहा अब जवाब तो देना पड़ेगा मुझसे ज्यादा तो निशा दिलचस्पी ले रही थी शानू का मुँह निचे था उसने बर्गर भी नहीं खाया फिर मैंने दुबारा कहा बता ना क्यों मजे ले रही है।उसने दबी सी आवाज में हाँ  कहा बस उसका एक शब्द मेरे लिए बहुत था,मुझे समझ ही नहीं आया क्या करू  तब तक सिम्मी मेम ने मुझे बुलाया जीत की  बधाई देने के लिए में वापस लोटा तो शानू घर निकल चूकी थी।श्याम को उसके घर गया पर आज कुछ अलग था शानू में!!! वो चुप थी बात नहीं कर रही थी मै  ही आंटी को हमारी जीत की कहानी सुना रहा था,मैंने कोशिश की बात करने की पर फयदा नहीं हुवा तो मै  लौट आया। अगले दिन हमे जीत के तौर पर ऑक्सफ़ोर्ड की डिक्शनरी मिली जो मैंने आज तक नहीं खोली,अब गंजे के लिए कंघी किस काम की बाकी अब अपनी क्या तारीफ करू। 
                      
                                    अब घर हो या क्लास-स्कूल हर जगह अब यही बर्ताव था शानू का,अब वो ना ढंग से बात करती......नजरें  चुराती मै  भी नहीं समझा,ये सब रोज का रूटीन हो गया मै  दिल को वो समझा नहीं पा रहा था जो मुझे खुद समझ नहीं आ रहा था।ऐसे 11 दिन बीत गए जब नहीं रहा गया तो ब्रेक ख़त्म होने  के बाद उसे क्लास के बाहर रोका मेरे कुछ बोलने से पहले ही वो बोल पड़ी मनीष हम दोस्त ही अच्छे थे,अब ये सुनकर अजीब तो लगा उसे अंदर भेज दिया पर मै खुद को समझा नहीं पा रहा की ऐसा क्या हुवा फिर वाली हमारा "कम्बख़्त दिल" पता नहीं कहाँ-कहाँ से खयाल ढूंढ कर ला रहा था के "हाँ  बोलने पर कोई तोहफा नहीं दिया मैंने इसलिए तो मना नहीं कर रही,या मेरे किसी दोस्त ने मेरे बारे में कुछ उल्टा तो नहीं कह दिया"।
                                  
                                                       उस दिन मै  श्याम को उसके घर गया और उसे सिर्फ इतना कहा के हम अब हमेशा दोस्त रहंगे तब से आज 05 सितम्बर 2014 है,मैंने आज तक मना करने की वजह नहीं पूछी हमारी दोस्ती को 10 साल से ऊपर हो चुके है। आज भी मै उसे मुर्गी ही बुलाता और हाँ आंटी का अभी भी फेवरट हूँ पर अब रामु-काका नहीं बना पड़ता,कौन कहता है एक लड़का-लड़की अच्छे दोस्त नहीं हो सकते पर  मिशन इक़रार के चलते मैंने  बहुत कुछ सीखा डांस से प्यार हो गया मुझे यकीन नहीं तो ये सुनो स्कूल छोरड़ने के दो साल तक भी मैंने एनुअल-फंक्शन में परफॉर्म किया सबने बहुत प्यार दिया स्कूल में सब डांस के लिए तारीफ करने लगे।मै भगवान पूजा-पाठ ये सब नहीं मानता पर मेरा माना  है के कुछ है इस दुनिया में जो सबको एक-दूसरे से जोड़े हुवा  है और जो होता है अच्छे के लिए होता है......।

 ध्यन्वाद 
मनीष पुंडीर 












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