गुरु जीवन में वही काम करता है जो आँख अंधे के लिए और सूरज सवेरे के लिए करते है,
अहमियत उनकी तब पता लगती है जब हमारे सामने कोई अंघूठा लगता है और हम हस्ताक्षर करते है.
माँ जन्म देती है वो सवश्रेष्ठ है पिता लालन-पालन करता वो उनका कर्तव्य है.
पर जो गुरु ज्ञान देता है वो तुम्हे खुद को नया जन्म और भविष्य में खुद को समाज में रहने लायक बनाता है.
बचपन की मछली जल की रानी आज भी मेरे चेहरे पर मुस्कान ले आती है,
आज भी जब कोई तारीफ पाता हुँ तो याद उन्ही की आती है,ज्ञान ही नहीं मिलता उनसे तमीज़ भी आती है.
बचपन में जो बस्ता भारी लगता था आज फिर से उसे टांगने को तरस जाता हुँ,
इस दुनिया की फायदे-नुकशान वाली सोच से परे मै फिर स्कूल जाना जीना चाहता हुँ.
गुरूओ की मार उस वक़्त बहुत बुरी लगती थी,पर आज तक उनकी सिख साथ है,
मुझे पता है मेरे अंदर एक अच्छा इंसान है और इस विश्वास में मेरे गुरुओं का ही हाथ है.
:-मनीष पुंडीर
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