Monday, November 3, 2014

मोलभाव

मोलभाव 

            जिंदगी से मोल भाव करते करते अब तो आदत कुछ इस कदर हो गयी है.. 
पाँव भर खुशिया लाकर दिल के रसोइघर में यादों की खिचड़ी पका लिया करते है। 
 तस्वीरों देख उन पलों  से रोशनी उधार लेकर मायूसी का अँधेरा तो भगा लेता हु..... 
अपने अरमानों को किसी तरह समझा कर सुला देता हुँ,पर खुद को समझाना भारी पड़ जाता है। 

अयिनो से बाते किया करता हु हाँ पहले भी  करता पहले तुझे क्या बोलूंगा कैसे बात करूंगा 
ये खुद में सीखता था अब तुझे कैसे भूलूंगा या पाउँगा भी या नहीं ये खुद को यकीं दिलाता हुँ। 
अब तो मेरे ख्याल भी मुझसे चिढ़ने लगे के हर बार फिर से वही सब.…  दिल का मर्ज़……




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बहनें...

प्रयास कुछ बेहतर के लिए..... सबको खुश रहने का हक़ है,अपने दिल की कहने का हक़ है... बस इसी सोच को बढावा देने का ये प्रयास है.                ...