Wednesday, July 29, 2020

कोरोना या डर ??????

 
                                              एक सच्ची कहानी मेरे एक दोस्त की नाम नहीं बताऊंगा क्युकी अक्सर लोग नाम के साथ एक छवि बना लेते है जो धर्म और जात से रंगो से बनी होती है। ये सिर्फ उसकी नहीं ऐसे लाखों लोगों की कहानी है जो डर के साए में जी रहे है, जो रोज़ घर से बाहर कदम रखने से पहले उपर वाले से यही दुआ करते है की बचा लेना। पर घर चलाने के लिए कमाना भी जरूरी है उसके लिए घर से निकलना ही पड़ेगा, आप भूक सहन कर सकते है क्युकी आपको पता है कोरोना क्या है पर आपके बच्चों को नहीं पता। 
   
                       तो मेरा दोस्त हर दिन की तरह घर से ऑफिस के लिए निकला भाभी ने उसे टिफिन दिया और उसके अपने छोटे बेटे जो अभी 6 महीने का है उसका माथा चूमा और निकल गया। वहा जाकर पता चला के ऑफिस में एक साथ के काम करने वाले आदमी को कोरोना पोजिटिव निकला है, वो थोड़ा असमंजस में था उसके सामने वो सारी खबरें आंकड़े चलने लगे थे जो उसने मीडिया में देखे थे। खेर उस आदमी को कोरेंटाइन के लिए भेज दिया गया। उसके बाद सब पहले जैसा ही चल रहा था, एक आधी बार बात भी उठी के बाकियों का भी चेकप करवा लेते है पर सब फिट महसूस कर रहे थे तो नहीं करवाया। एक हफ्ते बाद एक और केस आया फिर अब लोगों मे आपस मे कानाफूसी होने लगी, फिर एक जुट होकर सबने टेस्ट करवाए फिर जब रिजल्ट आया तो सिर्फ मेरा दोस्त पाज़िटिव नीकला बाकी सब नेगटिव। उसे रिपोर्ट आते ही घर भेज दिया गया और कहा गया जब तक कॉल न करे आप ऑफिस मत आईएगा। 

                                    वो बेमन घर लौटा. रास्ते मे उन सारे अहसासों को एक साथ महसूस कर रहा था कभी ये ख्याल आता की मै तो ठीक हु फिर मुझे क्यू हुआ ??? , तो कभी ये सोचने लगता की कही एसी जगह चला जाऊ जहा कोई न हो, कुछ ख्याल तो इतने डरावने थे के अगर मेरी वजह से मेरे बच्चों को ये सब हुआ तो खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊँगा, अब नौकरी बचेगी के नहीं ???, मै जिंदा तो रहूँगा न.. मुझे जीना है अपने लिए.... अपनों के लिए। उस एक कागज के टुकड़े ने एक खुसमिज़ाज आदमी को उसकी मौत सोचने पर मजबूर कर दिया, उसने अपनेआप को इतना लाचार कभी महसूस नहीं किया था। 

                                 किसी तरह भारी कदमों के साथ घर पहुच गया और सीधा बिना किसी से बात किए ऊपर वाले कमरे मे जाकर खुद को बंद कर लिया. घरवालों को उसी बंद कमरे से बताया के क्या हो गया उसके साथ,बच्चे उसके सामने ही पापा पापा कर रहे थे पर वो उन्हे मिल नहीं सकता था। कुछ देर बाद ऑफिस वालों का फोन आया उसे अस्पताल ले जाने की बात कही गई पर उसने कहा मै तो ठीक हु मुझे होम कोरेंटाइन रहने दो, काफी वाद-विवाद के बाद वो लोग मान गए। फिर शुरू हुआ डर का सिलसिला रोज टीवी पर सोशल मीडिया पर बढ़ते केस और मौतों की खबरे उसकी जीने के जज्बे को कम करते जा रहे थे, वो तन से तो ठीक था पर मन से बीमार था डरा हुआ था। उस डर की वजह कोरोना नहीं था वो डर लाचार होने का था, वो डर परिवार के लिए था, वो डर इसलिए भी था के अब आगे लोगों का नजरिया उसके लीये बदल जाएगा। 

                                        किसी भी अन्नोन नंबर से अगर कॉल आता था तो वो सहम जाता था कही उसे कोई हॉस्पिटल ले जाने तो नहीं अ रहा, वो एहसास बहुत बुरा था कुछ इस तरह का की आप अपने दुश्मनों को भी उसके न होने की पार्थना करोगे। वो इस बात से हैरान था के मै ठीक हु फिर भी उसने जानने के लिए गूगल किया, उससे भी कुछ हाथ नहीं लगा।  वह ये और  पढ़ लिया के 80 % मामलों मे insano को कुछ पता भी नहीं चलता के उसे कुछ हुआ भी है, पर अब ये भी सच ही के वायरस है और लोग उसे बीमार भी है पर इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं के जिसको हुआ वो जिंदा नहीं बचेगा। आजकल लोगों को कोरोना नहीं उसका डर मार रहा है, इतने भी हालात खराब नहीं होते जितने लोगों ने सोच सोच के दिमाग मे बना लिए है। 
                                   कहने मे आसान है के हमे बीमारी से लड़ना है बीमार से नहीं पर असल मे कहानी अलग है, रेपोर्ट्स के मुताबिक बुजुर्ग या जिन लोगों को पहले से अस्थमा, मधुमेह , हार्ट और किडनी  की बीमारी है उनके मामले में ख़तरा गंभीर हो सकता है। दूसरी ओर लोग भूकमरी से अधिक परेशान है, लोगों की नौकरी चली गई है और तो और जो काम पर है उन्हे पूरी तनख्वा भी नहीं मिल रही। अपनी सतर्कता ही इसका बचाव है इसके लिए मास्क पहने रखे, सेनेटाइज़र साथ रखे, बाकी इस बारे मे आप बहुत कुछ वैसे भी सुनते रहते है। मेरा दोस्त आज भी स्वस्थ है पर वो डर खत्म करने के लिए खुद को बंद किए बैठा है, हफ्ता भर और अलग रहेगा कल की बात हुई दिल की तस्सलि भी जरूरी है।
 
                                      इस सब मामले मे हमारा दिमाग बिल्कुल वैसे ही काम करता है जैसे इग्ज़ैम हाल मे जब पेपर हाथ मे आता है अगर हमे पता है के ये सब जो भी पुछा है आता है तो खुशी होती पर उसके उलट अगर कुछ नहीं आता तो फिर लगता है डर, आपका बार बार पाव हिलना.... हाथों मे पसीना आना..  ... गला बार बार सुखना ये सब कुछ निशानी है और अगर वो डर हावी हुआ तो आप बेहोश भी हो सकते है। यही बात कोरोना के लिए लागू होती है किसी को पूरी तरह पता नहीं है के ये है क्या??? तो खुद को डराओ मत और सावधानी रखो वो आपके हाथ मे है बाकी जो आपके हाथ मे नहीं है उसके लिए परेशान होने का क्या मतलब ?????


                       ( एक गुजारिश है,दूसरों के दुविधा सुनने के लिए हमेशा खुले रहो। ऐसे मत रहो की किसी को आपसे कुछ बात कहने के लिए दो बार सोचना पड़े। मेंटल हेलथ भी एक बहुत जरूरी चीज है कोई अपनी मर्जी से अकेला नहीं रहना चाहता, सबको साथ पसंद होता है किसी दोस्त का.. परिवार का किसी ऐसे का जिसे वो दिल की बात बता सके और उसे पता हो के वो आपकी बातों से आपको किसी अच्छे - बुरे के तराजू मे नहीं तोलेंगे)

:- 🖋 मनीष पुंडीर 

2 comments:

ANURAG SHARMA said...

भाई जब मैं जून में covid-19 की ड्यूटी करके आया था तब मेरा भी यही हाल था कोई भी फोन आता था तब मुझको यही डर लगता था के कोई हॉस्पिटल से या पुलिस से फोन तो नहीं आया।

Manish Pundir said...

haan bhai sbka yhi haal hai

बात करने से ही बात बनेगी...

          लोग आजकल ख़ुद को दूसरों के सामने अपनी बात रखने में बड़ा असहज महसूस करते है। ये सुनने और अपनी बात तरीके से कहने की कला अब लोगों में...