Thursday, April 25, 2024

बात करने से ही बात बनेगी...








          लोग आजकल ख़ुद को दूसरों के सामने अपनी बात रखने में बड़ा असहज महसूस करते है। ये सुनने और अपनी बात तरीके से कहने की कला अब लोगों में कम ही देखने हो मिलती है, सब्र अब इंसान में कम ही देखने हो मिलता है। उसका खाना तक तो भी रेडीमेड होता था रहा, शायद आने वाले समय में सिर्फ़ आपको सीधे विटाममिंस और मिनरल्स के कैप्सूल ही दिए जाए और खाना आपकी दिनचर्या का हिस्सा न रहे। पहले गांव में लोग शाम को बैठक लगाते थे, घर पर भी सब एक साथ खाना खाते थे। हर तीज त्यौहार में एक दूसरे को याद करके हाल चाल पूछ लिया करते थे। पर अब वो बात और हाल चाल सिर्फ सोशल मीडिया पर लाइक और कमेंट तक रह गया है, लोग एक दूसरे से बात करने से ज्यादा टैग करना ज्यादा जरूरी समझने लगे है। कॉमेंट करने वाले दोस्त तो बहुत है पर बात करने वाला ?? अगर हमें किसी से बात करने से पहले अच्छा बुरा सोचना पड़ रहा है तो वो न दोस्त है न परिवार, आपको अपने अपनों की गिनती करने की दुबारा जरूरत है। 
   

            समस्या है उन मानसिक दीवारों को तोड़ने की जो सबने अपने अपने हिसाब से बना रखी है। दिक्कतें सबके जीवन में है और समाधान भी आपको ही ढूंढना होगा। पर उसमें अपने आपको उन बेड़ियों में बांध कर रखोगे तो फ़िर वही फंसे रहोगे। मैं लड़का हूं कैसे अपनी मज़बूरी घर वालों को बता सकता हूं, पैसों की कमी के लिए बयाज़ पर पैसों के लिए पूछ लेता हूं पर जिन्हें तुम अपना कहते हो उनके आगे अपनी परेशानी बताने में खुद को कमज़ोर महसूस करते हो। आधे से ज्यादा लोग इसलिए परेशान है की उनके अंदर बहुत कुछ है पर कोई सुनने वाला ही नहीं है उनकी, बात कहो अंदर की कोई चिंगारी को ज्वालामुखी मत बनने दो क्योंकि जब वो फटेगा तो शायद आप समझा नहीं पाओगे किसी को और आप ही गलत समझे जाओगे। दिक्कत ये है हम गुस्से में या खुशी में चिलाते है और जब परेशान होते है तो चुप खुद में सोच सोच कर बुरे ख्यालों को जन्म देना शुरू कर देते है। करना इसका उल्टा चाइए खुशी और गुस्से में शान्त रहना चाइए और परेशान होने पर अपने अंदर जो चल रहा है बाहर निकालो। 


            ये मन की बात कह देने की कला सिर्फ़ गुस्से या दुख तक सीमित नहीं है। आपको ये हर जगह काम आयेगी आपके ऑफिस में, रिलेशनशिप, दोस्ती और आपके ख़ुद के लिए। हम सब किसी अपने बीते किस्से को याद कर उसे ख्यालों में जी कर सोचते है वहा मैने ये कहा मुझे ये कहना चाइए था, स्कूल में अपने ही पेपर या किसी इंटरव्यू के उत्तर को याद करके मन में खुद मलाल कर रहे होते हो की ये तो और बेहतर हो सकता था। जिस दिन आप ये समझ जाओगे की आपके होने न होने से जिन लोगों को फ़र्क पड़ता है, उन्हें ये जाने का पूरा हक है की आपके मन में क्या है। एक ही जीवन है इसमें काश की जगह न ही हो तो बेहतर है, कोई नहीं हमेशा के लिए रहने वाला न मैं न तुम पर वो यादें बाते हमेशा रहेगी जो हमने दूसरो संग कही और जी है उनके जिंदा रहने तक उसके बाद भी कहानियों के रूप में हम पुरानी दादी नानी की कहानी सुनने आए है सोचो अगर उन्होंने भी अपने मन में ही रख लिया होता सब तो फ़िर कहा बनती वो कहानियां ?? संकोच आपको बेहतर होने से रोकता है।
  

       मैं अपने अनुभव से ही ये कह सकता हूं क्योंकि मैंने ये जिया है और मुझे इसका परिणाम भी मिला। मैं अपने परिवार दोस्तों से खुलकर हर विषय में चर्चा कर सकता हूं, अपने कमज़ोर समय में उनसे मदद मांगने मे मुझे कोई संकोच महसूस नहीं होता। समस्या सबको अंदर से तोड़ देती है पर जब आपको पता हो कोई आपके साथ है उस परेशानी को सुनने समझने के लिए तो एक निश्चिंत भाव मन में रहता है। ये कही देख लेना सुन लेना की मन में रखा करो, कोई तुम्हारी मदद नहीं करेगा, बात कोई नहीं समझता तो उस भ्रम को तोड़ो। ये स्थिति समझने की कला दोनों तरफा होगी तभी सन्तुलन बन पाएगा, आपके पास कोई सुनने वाला है या आप किसी के सुनने वाले है तो जिंदगी में उसका शुक्रगुजार रहिएगा। अगर किसी की सहायता लायक आपके पास हो तो अपनी क्षमता अनुसार जरूर मदद करे पर उस व्यक्ति के लिए आपके नियम बदल जाने चाइए जिसे अपने मदद के बाद बदलते देखा हो या जो अपने किए वादे और दिए गए समय पर खरा न उतरा हो। एक वर्ग ऐसा भी है समाज में जो न कहने को दिल पर ले लेता है, समय के साथ वो न कहने और सुनने का संयम सिख लेना चाइए। घर में जो लोग आपके साथ है वही अंत में आपके साथ होंगे हर चीज़ में तो उनसे उनके मन का पूछते रहो और अपनी अच्छी बुरी उन्हें बताते रहो कोई यहां हमेशा के लिए नहीं रहने वाला, आज अभी यही पल जो है उसकी ही सत्यता है आने वाले अगले पल क्या हो क्या नहीं किसी को नहीं पता। तो अपने बात करों, क्योंकी बात करने से ही बात बनेगी.



:–मनीष पुंडीर 

      

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बात करने से ही बात बनेगी...

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