Saturday, December 16, 2017

हसरतें

#हसरते
  लाखों हसरते है ऐसी के न बताई जाये न दबाई जाये, दुनियां बड़ी चंट न समझ आये और न अपनी किसी को समझाई जाये.....

परिंदा बन उड़ने को मन खूब ज़िद तो करता है,पर मज़बूरी शिकार खूब जानती है ये बात इसे कैसे समझाई जाये ??

नदी किनारें सभी अहसासों का  एक दिन में हिसाब करूँगा , लहरें पैरों को छूकर फिर लौट जायेगी पर मैं नही माफ़ करूँगा।।

आईने में देख खुद को आँखों में बचपन टटोलता हूँ, अक़्सर अधुरी ख्वाइशों का बोझ लेकर तकिए पर सोता हूं।।

इस शहर के शोर से दूर कही दूर बस जाऊ जहाँ दिए के उजाले में आज भी दादी-नानी सर सहलाये, बारिश के पानी में कस्ती अपनी बढ़ाये आज फिर किसी बगीचे से आम तोड़ के खाये।।

कुछ है मेरी हसरतें जो पैसे से कीमती है बेचूँगा किसी दिन इन्हें कोई ख़रीदार मिला तो, पर फिर मन ये पूछे मुझसे इन दो कौड़ी के जज़्बातों की क्या कीमत लगाई जाए ??

वैसे मेरे अपने कहते है हँसना भूल गया हूं मैं अब उन्हें क्या वजह बताई जाये, मेरे यारों खुश हूँ तुम हो बस ख़ुद से खफ़ा हूं अब छोड़ो यार क्या नाराजगी जताई जाये।।

#मनीष पुंडीर

No comments:

तीन बहनों का एक भाई

                 मैं  तीन बहनों का एक भाई था और वो भी उनसे बड़ा, बचपन से ही उनकी परवाह करता रहा मां ने सिखाया था। मेरा बचपन थे वो अभी हाल ही...