ये शब्द सुनने में अजीब लग रहा होगा पर ये हमारे साथ हर वक्त साथ रहता हैं, सबके घर में कुछ ऐसी चीजें सिखाई जाती हैं कि हमें खुद पर संदेह होने लगता कि हम सही हैं या गलत। आप में से कुछ इससे अंधविश्वास से जोड़ कर भी देख सकते हैं, जैसे आपने पूजा करने को दिया जलाया और वो थोड़ी देर बाद बुझ गया जब की उसमें तेल की मात्रा भी पर्याप्त थी। तो आपको घरवालों से सुनने को मिलता हैं तूने मन से नहीं जलाया होगा, इस पर आप खुद के बारे में अंतर् मन में बात करते हैं क्या सच में ??? ऐसा कुछ है या ये महज़ एक सामान्य बात है।
आत्मसंदेह जन्म देता हैं आत्ममंथन को जो आपके बहुत सारे प्रश्नों का उत्तर पाने में आपकी सहायता करता हैं।हर कोई अपनी कहानी में हीरो होना चाहता हैं,पर असल में वो कितना उस पर खरा उतरता हैं यही मंथन का विषय हैं। ये मंथन आपको एक नजरिया देता हैं जिसमें आपको ये समझ आने लगता हैं कि कौन से वो पक्ष हैं जिन पर आपको ध्यान देना हैं।आप जाने अनजाने ये आत्मसंदेह करते हैं, अपने मन में दूसरों से तुलना करके या जब चीज़े आपके विपरीत जा रही हो।
कुछ घरों में आपकी छींक से भी आपको अच्छा बुरा आंका जाता हैं,कभी किसी नए काम कर बारे में बात हो और आप छींक दो तो सबका ध्यान आपकी तरफ़ ही केंद्रित हो जाता हैं। हमारा मन ही इन चीज़ों को बढ़ावा देता हैं,आप खुद को ही आंकते रहते हैं की मैं इन मापदंडों पर खरा उतरता हूं की नहीं। आत्मसंदेह अच्छा बुरा दोनों हो सकता हैं वो सब आप पर निर्भर हैं कि आप उसे कैसे लेते हैं।कुछ इस बात पर यकीन कर लेते हैं कि हम ही शायद बदनसीब हैं। दूसरी ओर बाकी खुद को ही चुनौती देते हैं नहीं हम इस सोच को बद लेंगे, आखिर में जब वो उस संदेह को पार पा लेते हैं तो और बेहतर महसूस करते हैं।
आखिर में इतना कहूंगा आत्मसंदेह आपको मंथन करवाएं तो अच्छा हैं पर इसके विपरीत आप खुद पर इसे हावी होने देंगे तो फिर आप मानसिक तौर पर कमज़ोर होते रहेंगे।
3 comments:
Nice thought sir ji
Bilkul theek bat likhi h sir
nice line
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