Friday, July 26, 2024

"मैं" मेरा मुझसे...

    
            जीवन एक चक्र है, जिसमें कभी कोई आपका ख्याल रखता है और फिर एक समय के बाद आपको दूसरों का ख्याल रखना होता है। जहां आपको जीवन में आने के लिए ही दो लोगों का होना जरूरी है वहां आप कैसे 
सोच सकते है की आप अकेले ही सब चीजों की वजह है या आप ही ब्रह्माण्ड का केंद्र हो। ख़ुद पर ध्यान देना आवश्यक है पर अपने सामने किसी और को कुछ न समझना मूर्खता है, शतरंज के खेल में भी हर किसी की अपनी एहमियत होती है और जब उनमें से कोई प्यादा संघर्ष करके अंत में पहुंच जाता तो फिर वो अपने से बेहतर रूप में तब्दील होता है। इंसान का भी ऐसा ही है आप आपके खेल में राजा हो सकते हो पर दूसरों की कहानी का भी एक सहायक क़िरदार जरूर हो "प्रकृति में सब कुछ एक दूसरे से जुड़ा है" कभी मौका मिले तो पढ़ना इस बारे में आपको आज के गुरु गूगल बाबा से बहुत कुछ मिल जाएगा इस संदर्भ में।



      कभी आपके शुभचिंतकों में वो लोग भी होते है जिन्हें आप नोटिस नहीं करते। एक छोटी कहानी सुनाता हूं एक होटल था उसमें शाम को भीड़ होती तो एक गरीब भीड़ में चुपचाप खा कर बिना पैसे दिए चला जाता है, ये करते उसे एक आदमी रोज़ ध्यान दे रहा था चार पांच रोज़ बाद उसने होटल मालिक को इस आदमी के बारे में बताया। मालिक ने उसे बड़े शांत भाव से जवाब दिया मुझे पता है वो ऐसा करता है पर वो साथ में हर रोज़ ऊपरवाले से ये दुवा भी करता है की दुकान पर भीड़ हो ताकि वो भीड़ में खाना खा सके तो क्या पता ये काम उसी की दुवाओं पर चल रहा हो। तो आपको नहीं पता आपके अच्छे होने के पीछे किसकी किसकी दुवाएं है तो बस आप अपने कर्म अच्छे रखे क्योंकि कोई भी कर्म चाहे वो अच्छा हो या बुरा बिना अपना फल दिए नष्ट नहीं होता। 


     तो ये "मैं" का द्वेष मन में लिए कभी मत रहना आप न अकेले कामयाब होते हो न ही अकेले हारते हो आपके पीछे उन अपनों का भरोसा, दुवाये और जिम्मेदारियां जो जब भी आप कमज़ोर पड़े हो उनकी याद करके आपको हौसला मिलता है। मैंने किया, मैं ही हूं, मेरे जैसा कोई नहीं, मैं ही सबसे जरूरी हूं ये ख्याल आपके मन में घमंड पैदा कर सकता है। इसके उलट आप कभी भी अकेले नहीं हारते आपके साथ वो सारी उम्मीदें ही हारती है जो अपनों ने आपसे लगा रखी है। इसका सटीक उदाहरण जब इंडिया वर्ल्ड कप में फाइनल हारा तो बुरा आपको भी लगा तो वो अकेले नहीं हारे और फिर उसके बाद जब इंडिया टी 20 वर्ल्ड कप जीते तो वो अकेले नहीं जीते हम सब ने भी उसका जश्न मनाया था। तो दूसरों से भी वैसा ही बर्ताव करे जैसा आप चाहते है लोग आपके साथ करे ये आदत आपको एक बेहतर इंसान बनाने में मदद करेगी।


:–मनीष पुंडीर 

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