Saturday, December 28, 2024

मैं श्रेष्ठ हूं

           
अगर आपको अपनी आस्था पर भरोसा है और आप यह यकीन रखते हैं कि आपके किए गए अच्छे कर्म आपको पलट कर मिलेंगे, और आपने हर प्रार्थना में बिना किसी स्वार्थ के सबकी भलाई की कामना की है, तो यकीन मानिए, आपके भले की कामना भी कोई और कर रहा होगा। इस दुनिया में अच्छे लोगों के लिए बहुत अच्छाई है और बुरे लोगों के लिए उनके जैसे ही लोग। यह वहम नहीं होना चाहिए कि आपके गलत कर्मों की गिनती नहीं हो रही।

दूसरे लोग अपनी सोच आप पर थोपने की कोशिश करेंगे। हर कोई खुद को दूसरों से श्रेष्ठ बताने की कोशिश करता है। इसके आधार धर्म, जाति, लिंग, क्षेत्रवाद, रंग, या आपके काम का स्वरूप भी हो सकता है। हर किसी को अपने समर्थकों की संख्या बढ़ानी है ताकि वे दूसरों को दबा सकें। लेकिन यह कितना सही है? जो इस तरह के भेदभाव के दलदल में फंस गया, वह कभी कामयाब नहीं हो सका।

            क्या आपने कभी अपनी दुकान पर ग्राहक से उसके धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव किया? किसी अस्पताल में डॉक्टर से इलाज कराने से पहले उसकी जाति पूछी? किसी घायल की मदद करने से पहले उसका गोत्र पूछा? स्कूल में किसी शिक्षक से यह कहा कि वह आपके बच्चों को न पढ़ाए क्योंकि वह किसी खास जाति या धर्म का है? किसी भूखे को खाना खिलाने से पहले उससे सवाल पूछे? या किसी जॉब इंटरव्यू में अपने बॉस से धर्म-जाति के आधार पर नौकरी देने से इनकार किया?

              सच्चाई यह है कि जो लोग कामयाब होते हैं, वे भेदभाव से ऊपर उठ जाते हैं। आपको भी अपने ऊपर ध्यान देना चाहिए। दूसरों से बेहतर बनने की बजाय खुद को इतना योग्य बनाइए कि आप दूसरों को भी सही राह दिखा सकें। आपके लिए कोई और नहीं आएगा, न ही कोई आपको जिंदगी भर सहारा देगा। माता-पिता चलना सिखाते हैं, लेकिन जीवन में कहां जाना है, यह आपको खुद तय करना पड़ता है।

इस दोगलेपन को त्यागिए, जो आपको अंदर से कुछ और और बाहर से कुछ और बनने पर मजबूर करता है। ऐसा करेंगे तो आप जीवन की बाकी बेहतर चीजों पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगे। यदि आप दूसरों से अच्छा व्यवहार चाहते हैं, तो आपको भी उनके साथ अच्छा व्यवहार करना होगा। किसी को भी भेदभाव का शिकार होना पसंद नहीं है। आपकी उपेक्षा किसी व्यक्ति को डिप्रेशन का शिकार बना सकती है या उसे गलत राह पर ले जा सकती है।

समाज को बेहतर बनाना है तो शुरुआत खुद से करें। दूसरों से मदद की उम्मीद करने से पहले अपनी नियत को वैसी बनाएं। यहां भड़काने वाले बहुत मिलेंगे, जो आपको धर्म, जाति या किसी अन्य आधार पर बांटने की कोशिश करेंगे। लेकिन सामने वाले ने आपका क्या बिगाड़ा है? बुराई की कोई जाति या धर्म नहीं होता।

सबके साथ रहिए, बुरे व्यक्तित्व से दूर रहिए। दूसरों से बड़ा दिखने की चाह आपको और छोटा बना देती है।

- मनीष पुंडीर


Sunday, August 4, 2024

दोस्ती...

    
                            

          
 ये एक शब्द के लिए सबके मायने अलग अलग है। पर एक चीज़ जो दोस्ती मांगती है वो है साथ और सच्चाई, दोस्ती बस ट्यूनिंग मिलने से हो जाती है इसमें कोई जात,धर्म लड़का लड़की, कम ज्यादा का मापदंड नहीं होता। उम्र के साथ साथ दोस्तों के मायने भी बदलते रहे, बस में सीट रोकने वाला दोस्त, क्लास में साथ टिफिन खाने वाला दोस्त, साइकिल में पीछे बिठाने वाला दोस्त, पहली बार मनोहर कहानी पढ़ाने वाला दोस्त, दिवाली पर बम फोड़ के फसाने वाला दोस्त, वो तुझे पसंद करती है ये बताने वाला दोस्त, अपने एग्जाम शीट से तुझे पास करवाने वाला दोस्त, सिगरेट का धुवा अंदर लेते है ये बताने वाला दोस्त। स्कूल से तो कबके निकल गए थे पर वो स्कूल वाले कुछ यार आज तक साथ है.

     फिर मेंढक कुवे से बाहर निकल तालाब पहुंचा। मेरठ का ये लौंडा दिल्ली गया कॉलेज पढ़ने वहा की तो आबो हवा पूरी बदली हुई पाई, फ्रेशर्स पार्टी में जब एक कन्या ने साथ पार्क चलने की इच्छा जताई। एक दोस्त वहा भी मिला जिसमे कहा वो तुझे लाइन दे रही थी और तूने साले वो नहीं पटाई, अब कमरा अपना यारों का अड्डा हो गया बाकी कोई किसी के यहा जाता होगा तो फ्रूट्स, जूस या मिठाई ले जाता होगा पर यहां कमरे में जो आता तो उनसे सिगरेट, ठंडे पानी की बोतल और यदि भूख हो तो मैगी के पैकेट या एक आधा एग रोल। यहां भी नए यार मिले गिटार पर चिला चिला कर साथ गाने वाले, दारू में सोडा मिलाकर उसे बियर बनाने वाले यार, एक ही बिस्तर पर चार चार पसर जाने वाले यार, रात को सासी का पता बताने वाले यार, कॉन्ट्री न देने पर बर्तन धुलवाने वाले यार, हमारे कमरे को OYO बनाने वाले यार, फिर घरवालों के आने पर साफसफाई करवाने वाले यार, नशे में बिस्तर पर सुलाने वाले यार, तुम्हारे मुंह पर तुम्हें हुतिया कहने वाले यार, सिगरेट के खाली डब्बो का पिरामिंड बनाने वाले यार, गैस खत्म होने पर फिर उनकी डब्बियो को जला जला कर मैगी बनाने वाले यार, साथ पाने खोने वाले दोस्त दुख में साथ रोने वाले दोस्त किस्से इतने है मैं किताब लिख दूं पर थोड़ा थोड़ा मौके मौके पर मिलता रहेगा।


 दोस्ती को आप कोई टेप लेकर नाप नहीं सकते, दो लोगों में आपस में गजब का तालमेल होता है। जैसा कर्ण और दुर्योधन में था, जैसा कान्हा सुदामा में था, जैसा राम और सुग्रीव में था, जैसा कृष्ण और अर्जुन में था, जैसा अकबर बीरबल में थी, जैसी दौप्रदी संग माधव की थी लोग आपके बारे में क्या राय रखते है वो उनके नज़रिए है पर आपको अपने दोस्त का कभी सारथी होना होता है, कभी उसके गलत में भी साथ देना होता है। कभी बाप बनकर पालेंगे, कभी मां की तरह संभालेंगे, कोई भी तय मायने नहीं होते दोस्ती के जिसके साथ जो वक्त जिया बेहतरीन जिया, कोई दोस्त कम नहीं सब के सब आज भी साथ है बस कभी कभी उन्हें खोने के ख्याल से डर लगता है। आजकल की जिंदगी में दोस्तों से वक्त निकाल के मिल लिया करो वो डिटॉक्स का काम करते है, वो आपको किसी अच्छे बुरे के तराज़ू में नहीं तौलते। जाओ भेजो अपने दोस्तों को ये मैसेज और बताओ उन्हें भी साले टेढ़े है पर मेरे है। 


– मनीष पुंडीर 

Friday, July 26, 2024

"मैं" मेरा मुझसे...

    
            जीवन एक चक्र है, जिसमें कभी कोई आपका ख्याल रखता है और फिर एक समय के बाद आपको दूसरों का ख्याल रखना होता है। जहां आपको जीवन में आने के लिए ही दो लोगों का होना जरूरी है वहां आप कैसे 
सोच सकते है की आप अकेले ही सब चीजों की वजह है या आप ही ब्रह्माण्ड का केंद्र हो। ख़ुद पर ध्यान देना आवश्यक है पर अपने सामने किसी और को कुछ न समझना मूर्खता है, शतरंज के खेल में भी हर किसी की अपनी एहमियत होती है और जब उनमें से कोई प्यादा संघर्ष करके अंत में पहुंच जाता तो फिर वो अपने से बेहतर रूप में तब्दील होता है। इंसान का भी ऐसा ही है आप आपके खेल में राजा हो सकते हो पर दूसरों की कहानी का भी एक सहायक क़िरदार जरूर हो "प्रकृति में सब कुछ एक दूसरे से जुड़ा है" कभी मौका मिले तो पढ़ना इस बारे में आपको आज के गुरु गूगल बाबा से बहुत कुछ मिल जाएगा इस संदर्भ में।



      कभी आपके शुभचिंतकों में वो लोग भी होते है जिन्हें आप नोटिस नहीं करते। एक छोटी कहानी सुनाता हूं एक होटल था उसमें शाम को भीड़ होती तो एक गरीब भीड़ में चुपचाप खा कर बिना पैसे दिए चला जाता है, ये करते उसे एक आदमी रोज़ ध्यान दे रहा था चार पांच रोज़ बाद उसने होटल मालिक को इस आदमी के बारे में बताया। मालिक ने उसे बड़े शांत भाव से जवाब दिया मुझे पता है वो ऐसा करता है पर वो साथ में हर रोज़ ऊपरवाले से ये दुवा भी करता है की दुकान पर भीड़ हो ताकि वो भीड़ में खाना खा सके तो क्या पता ये काम उसी की दुवाओं पर चल रहा हो। तो आपको नहीं पता आपके अच्छे होने के पीछे किसकी किसकी दुवाएं है तो बस आप अपने कर्म अच्छे रखे क्योंकि कोई भी कर्म चाहे वो अच्छा हो या बुरा बिना अपना फल दिए नष्ट नहीं होता। 


     तो ये "मैं" का द्वेष मन में लिए कभी मत रहना आप न अकेले कामयाब होते हो न ही अकेले हारते हो आपके पीछे उन अपनों का भरोसा, दुवाये और जिम्मेदारियां जो जब भी आप कमज़ोर पड़े हो उनकी याद करके आपको हौसला मिलता है। मैंने किया, मैं ही हूं, मेरे जैसा कोई नहीं, मैं ही सबसे जरूरी हूं ये ख्याल आपके मन में घमंड पैदा कर सकता है। इसके उलट आप कभी भी अकेले नहीं हारते आपके साथ वो सारी उम्मीदें ही हारती है जो अपनों ने आपसे लगा रखी है। इसका सटीक उदाहरण जब इंडिया वर्ल्ड कप में फाइनल हारा तो बुरा आपको भी लगा तो वो अकेले नहीं हारे और फिर उसके बाद जब इंडिया टी 20 वर्ल्ड कप जीते तो वो अकेले नहीं जीते हम सब ने भी उसका जश्न मनाया था। तो दूसरों से भी वैसा ही बर्ताव करे जैसा आप चाहते है लोग आपके साथ करे ये आदत आपको एक बेहतर इंसान बनाने में मदद करेगी।


:–मनीष पुंडीर 

Friday, July 19, 2024

हम बड़े हो रहे है....

             


   परिवर्तन जीवन चक्र का अभिन्न अंग है, आप भी समय के साथ इसको अपनाते हो। जहां बचपन में अपना हर अच्छा बुरा सही गलत जब तक घर पर आकर बता ना दे चैन नहीं पड़ता था और अब सब आपको आपका दुख बताते है पर आप ने ख़ुद के दुखों को बताना बंद कर दिया क्योंकी आप अकेले नहीं औरों की हिम्मत भी हो। बड़े होते होते एक समय आता है जब घरवालों के मंगाए सामना के बचे हुवे पैसे अपने पास रखना शुरू करते हो और फिर अब जब आप खुद कमाने लगे तो कही कुछ ज्यादा देकर घरवालों के लिए लेना पड़े तो भी ले लेटे है इसलिए नही के वो ले नहीं सकते बल्कि पता है वो उसका रेट सुनकर कभी नहीं लेंगे। पहले जहां खाने में भी नखरे होते थे ये नहीं खाऊंगा, ये सब्जी नहीं चाइए, ये रोटी नहीं पराठा चाइए और अब ज़िद के लिए नहीं जरूरत के लिए खाना खा रहे है। 

    अब बारिश देखकर पहले जो उत्साह होता था अब वो बारिश के कारण समय पर शिफ्ट पर न पहुंच पाने की चिंता में बदल गया है। वक्त के साथ धीरे धीरे समझ आने लगता है जो जो जीवन में नहीं पा सके वो उतना जरूरी भी नहीं था और वहीं मिला है जो आपके लिए जरूरी था। दोस्ती बड़े होकर ही समझ आती है, दोस्त से हर दिन बात हो ये जरुरी नहीं पर जब बात हो तो फ़िर ऐसा न लगे की ज़माने से बात नहीं हुई। स्कूल कॉलेज में जो जिंदगी भर साथ रहेंगे का वादा बड़े होने के बाद धुंधला रिश्ते भी बड़े होकर ही समझ आते है जब बहनें अब दूसरे घरों को बहु बन जाती है, मां अब जिम्मेदारियों की समझ देने के लिए थोड़ा सख्त हो जाती है और पिता जी अब नरम होने लगते है अपना सब अच्छा बुरा बताने लगते है दोस्त बनकर आप भी अब एक पति और पिता होने के नाते उनकी सुनकर अपनी छुपा लेते हो। बड़े होना आपको सुनने, समझने और सहने की शक्ति देता है जो अनुभवों से आती है। हम बड़े होने के बाद आधा जीवन उस चमत्कार के इंतजार में निकाल देते है ऐसा क्या करदे की घरवालों के सभी कर्ज़ और उनकी इच्छाएं एक साथ पूरी हो जाए बाकी आधी इस शंका में निकाल देंगे क्या मैंने अपने सभी क़िरदार अच्छे से निभाए के नहीं। 

बड़े होकर आप दूसरों की सोच को ढोकर नहीं चलते आपको फ़र्क पड़ना बंद हो जाता है कि दुसरे क्या कहेंगे क्यूंकि आप ही उन परिस्थितियों को समझ सकते हो जिन्हें आप जी रहे हो। आपको आंखो के आगे दिख रहा होता है कौन आपका अच्छा कर रहा और कौन चालाकी पर फ़िर भी आप कुछ कहते नहीं क्योंकि आपका किया आपको लौट कर जरूर मिलता है। उम्र और वक्त किसी के लिए नहीं रुकते बस समय के साथ आपके ख्वाइशे और मलाल बदलते रहते है, पर एक चीज़ है जो आपको हमेशा ध्यान रखनी है सब अपनी धूनी पर चलता रहेगा आपसे पहले भी सब चल रहा था इस दुनियां में और आपके जाने के बाद भी चलता रहेगा बस आपको इस मिले समय को अच्छे से जीना है क्योंकि हम सब बड़े हो रहे है... 

:-मनीष पुंडीर 

Sunday, June 16, 2024

बाप

                



        जो बाप से ढंग से बात करने में भी हिचकिचाते है, वो भी आज हैप्पी फादर्स डे का स्टेट्स लगा रहे। प्यार जताना है तो उनको बता कर करो, दुनियां को बता कर क्या करोगे। जीवन एक चक्र है पैदा होने से अंतिम समय तक आप अलग अलग क़िरदार निभाते हो, मां के लिए बहुत कुछ कहा जाता है पर पिता को बहुत कम लिखा जाता है।  उम्र के साथ साथ बापू के साथ के भाव भी बदलते रहते पहले डर , फ़िर दोस्ती और बाद में चिंता। बाप बनने के बाद बाप समझ आता है, सख्त जरूर है पर बुरा नहीं चहता है। 
 
              बहुत से मेरे करीबी है जिनके पिता जी नहीं है, वो खालीपन कोई नहीं भर सकता पर मलाल उनको इस बात का ज्यादा है के जब वो माजूद थे तब उन्हें नहीं जता पाए। मैं सबको यहीं कहना चाहता हूं, मलाल की कोई गुंजाइश मत रखना जो जैसा जितना कर सको उनके लिए करो। किसी को अगर सच में अपनापन जताना चाहते हो तो उसका सबसे सक्षम तरीका है पहला उनसे सच्चे रहो साथ ही  उसके लिए बिना उम्मीद करते रहना। जब आप अपने दिमाग को इन उलझनों में फसा देते हो न की मैं करू या नही, उनके बोलूं या नहीं, उनको बताऊं या नहीं। अबे यार वो भी तो इसी चक्र का हिस्सा है उन्होंने भी दादा जी के साथ असमंजस में जीवन बिताया होगा, उनके भी कुछ मलाल होंगे उनसे भी कुछ छूटा तो होगा। 

           जनरेशन गैप और कोई नहीं आप और हम ही बनाते है, जब आप ये धारण बना लेते हो के हमारे मां बाप इस चीज़ को नहीं समझेंगे। अबे जिन्होंने तुझे पढ़ा लिखा कर इतनी समझ देदी की आज तू उनके समझने पर सवाल उठा रहा है। कोशिश करोगे तो उनको भी समाज में हो रहे बदलाव, बदलती टेक्नोलॉजी, बदलता माहोल समझ में आयेगा। पर खुल के बात करे कौन ??? भई जब तुम बोलना भी नहीं सीखे थे न तबसे वो तुम्हें सीखा रहे है और आज तुम बात करने में हिचकते हो। 

       आजकल हो यहीं रहा है, परेशानियों के लिए हम सोचते है घर पर जितना छुपा सके उतना अच्छा है। पर जो सलाह उन अनुभवी लोगों से आपको मिल सकती है न वो शायद बाहर से न मिले। तो मन की पीड़ा सब बताया करो घर पर, उसे आपका भी मन हल्का होगा और सामने वाला भी फ़िर आपके सामने अपनी पीड़ा रखेगा। बाकी जो लोग मुझे पहले से पढ़ते आए है, वो जानते है मैं हमेशा यहीं कहता आया हूं एक दिन आपके किसी भी रिश्ते की एहमियत तय नहीं करता। 

अगर वाकई उस रिश्ते में लगाव होगा तो वो फिर किसी दिन समय और मौके का इंतज़ार नहीं होता। बाकी अंत में यहीं कहता है तुम शायद जिस ताने और डांट को दिल से लगाए बैठे हो कुछ उसी के लिए तरस रहे... 


:–मनीष पुंडीर 

Sunday, May 12, 2024

मां

        


 
          कहीं पढ़ा था भगवान सब जगह नहीं हो सकते इसलिए उन्होंने मां बनाई, फ़िर लोगों ने उसी मां के नाम पर गाली बना दी। मां सबके पास होती है, पर सब मां के पास नहीं होते। मां को प्यार करने के लिए एक दिन कैसे चुन सकते हो ?? जिसने तुम्हें लाने के लिए ख़ुद 9 महीने अपने अंदर रखा था। मां को अगर बचपन से अभी तक ध्यान से समझो तो उनसे बड़ा मल्टीटास्किंग करने वाला नहीं मिलेगा, तुम लोग क्या ही ओवरटाइम करते होगें मैने मां को देर रात अपने इंतज़ार में जागते देखा है। मां को मैनेजमेंट का परफेक्ट उदहारण घोषित कर देना चाइए एक तंखा में पूरे महीने के खर्चे निकालना और उसी बीच कोई तीज त्यौहार आए तो उसके लिए भी बचा कर रख लेना। किसी भी इमोशन को मां ने कभी नहीं दबाया जब गुस्सा आया तो भी पूरा निकाला, उसके बाद चोट देखकर पछतवाए के आंसू भी आए और डॉक्टर के पास लेकर जब चोट पर दवा लगी देख तब ख़ुद को दर्द महसूस करके आंख बंद भी करती है। 

               मैंने कभी मां को नहीं बोला या बताया के मैं उनसे बहुत प्यार करता हूं क्योंकी वो शब्द नहीं मिले जिनसे वो इमोशन बता सके। मां किसी की भी हो उसने हमेशा बच्चों को हर वो चीज़ देनी चाही जो वो कर सकती थी। अच्छी परवरिश, पापा की मार से बचाव, स्कूल के टिफिन भरने के लिए आंखो की नींद खाली की, तुम्हारी बचपन की मालिश से लेकर तुम्हें कामयाब होते देखने कि ख्वाइश तक। तुम उनके अंदर से 9 महीने के बाद तो निकल गए पर तुम्हारी चिंता उनके अंदर से आजतक नहीं निकली, मां और बाप दोनों बहुत ज़रूरी है जीवन में।

आपने बच्चों को मां बाप छोड़ते देखा होगा पर किसी मां बाप को अपने बच्चें छोड़ते देखा है ?? 


:–मनीष पुंडीर 

Thursday, April 25, 2024

बात करने से ही बात बनेगी...








          लोग आजकल ख़ुद को दूसरों के सामने अपनी बात रखने में बड़ा असहज महसूस करते है। ये सुनने और अपनी बात तरीके से कहने की कला अब लोगों में कम ही देखने हो मिलती है, सब्र अब इंसान में कम ही देखने हो मिलता है। उसका खाना तक तो भी रेडीमेड होता था रहा, शायद आने वाले समय में सिर्फ़ आपको सीधे विटाममिंस और मिनरल्स के कैप्सूल ही दिए जाए और खाना आपकी दिनचर्या का हिस्सा न रहे। पहले गांव में लोग शाम को बैठक लगाते थे, घर पर भी सब एक साथ खाना खाते थे। हर तीज त्यौहार में एक दूसरे को याद करके हाल चाल पूछ लिया करते थे। पर अब वो बात और हाल चाल सिर्फ सोशल मीडिया पर लाइक और कमेंट तक रह गया है, लोग एक दूसरे से बात करने से ज्यादा टैग करना ज्यादा जरूरी समझने लगे है। कॉमेंट करने वाले दोस्त तो बहुत है पर बात करने वाला ?? अगर हमें किसी से बात करने से पहले अच्छा बुरा सोचना पड़ रहा है तो वो न दोस्त है न परिवार, आपको अपने अपनों की गिनती करने की दुबारा जरूरत है। 
   

            समस्या है उन मानसिक दीवारों को तोड़ने की जो सबने अपने अपने हिसाब से बना रखी है। दिक्कतें सबके जीवन में है और समाधान भी आपको ही ढूंढना होगा। पर उसमें अपने आपको उन बेड़ियों में बांध कर रखोगे तो फ़िर वही फंसे रहोगे। मैं लड़का हूं कैसे अपनी मज़बूरी घर वालों को बता सकता हूं, पैसों की कमी के लिए बयाज़ पर पैसों के लिए पूछ लेता हूं पर जिन्हें तुम अपना कहते हो उनके आगे अपनी परेशानी बताने में खुद को कमज़ोर महसूस करते हो। आधे से ज्यादा लोग इसलिए परेशान है की उनके अंदर बहुत कुछ है पर कोई सुनने वाला ही नहीं है उनकी, बात कहो अंदर की कोई चिंगारी को ज्वालामुखी मत बनने दो क्योंकि जब वो फटेगा तो शायद आप समझा नहीं पाओगे किसी को और आप ही गलत समझे जाओगे। दिक्कत ये है हम गुस्से में या खुशी में चिलाते है और जब परेशान होते है तो चुप खुद में सोच सोच कर बुरे ख्यालों को जन्म देना शुरू कर देते है। करना इसका उल्टा चाइए खुशी और गुस्से में शान्त रहना चाइए और परेशान होने पर अपने अंदर जो चल रहा है बाहर निकालो। 


            ये मन की बात कह देने की कला सिर्फ़ गुस्से या दुख तक सीमित नहीं है। आपको ये हर जगह काम आयेगी आपके ऑफिस में, रिलेशनशिप, दोस्ती और आपके ख़ुद के लिए। हम सब किसी अपने बीते किस्से को याद कर उसे ख्यालों में जी कर सोचते है वहा मैने ये कहा मुझे ये कहना चाइए था, स्कूल में अपने ही पेपर या किसी इंटरव्यू के उत्तर को याद करके मन में खुद मलाल कर रहे होते हो की ये तो और बेहतर हो सकता था। जिस दिन आप ये समझ जाओगे की आपके होने न होने से जिन लोगों को फ़र्क पड़ता है, उन्हें ये जाने का पूरा हक है की आपके मन में क्या है। एक ही जीवन है इसमें काश की जगह न ही हो तो बेहतर है, कोई नहीं हमेशा के लिए रहने वाला न मैं न तुम पर वो यादें बाते हमेशा रहेगी जो हमने दूसरो संग कही और जी है उनके जिंदा रहने तक उसके बाद भी कहानियों के रूप में हम पुरानी दादी नानी की कहानी सुनने आए है सोचो अगर उन्होंने भी अपने मन में ही रख लिया होता सब तो फ़िर कहा बनती वो कहानियां ?? संकोच आपको बेहतर होने से रोकता है।
  

       मैं अपने अनुभव से ही ये कह सकता हूं क्योंकि मैंने ये जिया है और मुझे इसका परिणाम भी मिला। मैं अपने परिवार दोस्तों से खुलकर हर विषय में चर्चा कर सकता हूं, अपने कमज़ोर समय में उनसे मदद मांगने मे मुझे कोई संकोच महसूस नहीं होता। समस्या सबको अंदर से तोड़ देती है पर जब आपको पता हो कोई आपके साथ है उस परेशानी को सुनने समझने के लिए तो एक निश्चिंत भाव मन में रहता है। ये कही देख लेना सुन लेना की मन में रखा करो, कोई तुम्हारी मदद नहीं करेगा, बात कोई नहीं समझता तो उस भ्रम को तोड़ो। ये स्थिति समझने की कला दोनों तरफा होगी तभी सन्तुलन बन पाएगा, आपके पास कोई सुनने वाला है या आप किसी के सुनने वाले है तो जिंदगी में उसका शुक्रगुजार रहिएगा। अगर किसी की सहायता लायक आपके पास हो तो अपनी क्षमता अनुसार जरूर मदद करे पर उस व्यक्ति के लिए आपके नियम बदल जाने चाइए जिसे अपने मदद के बाद बदलते देखा हो या जो अपने किए वादे और दिए गए समय पर खरा न उतरा हो। एक वर्ग ऐसा भी है समाज में जो न कहने को दिल पर ले लेता है, समय के साथ वो न कहने और सुनने का संयम सिख लेना चाइए। घर में जो लोग आपके साथ है वही अंत में आपके साथ होंगे हर चीज़ में तो उनसे उनके मन का पूछते रहो और अपनी अच्छी बुरी उन्हें बताते रहो कोई यहां हमेशा के लिए नहीं रहने वाला, आज अभी यही पल जो है उसकी ही सत्यता है आने वाले अगले पल क्या हो क्या नहीं किसी को नहीं पता। तो अपने बात करों, क्योंकी बात करने से ही बात बनेगी.



:–मनीष पुंडीर 

      

मैं श्रेष्ठ हूं

            अगर आपको अपनी आस्था पर भरोसा है और आप यह यकीन रखते हैं कि आपके किए गए अच्छे कर्म आपको पलट कर मिलेंगे, और आपने हर प्र...