Thursday, October 8, 2020

समाज और समझ


              
ये सिर्फ़ एक लेख नहीं चीख है उन लोगों कि जो समाज के हिसाब से नहीं चलते तो उन्हें गलत कह दिया जात है। अपने यहां एक बहुत बड़ी समस्या है कि सबको अपने काम से मतलब नहीं है दूसरे क्या कर रहे है इसकी चिंता अधिक है।अपने घर में दिक्कतें चल रही हो पर परेशानी इस बात से है कि पड़ोस में लोग क्यों खुश है। 

                   सच कहूं तो ये एक मिथ्या भर है कि लोग क्या सोचेंगे अगर आप अपने हिसाब से चलेंगे तो, अब वो तो लोग सोचेंगे उन्हें ही करने दो क्यूंकि आप उनको खुश करने नहीं आए हो सबसे पहले ख़ुद की खुशी बहुत जरूरी है। इस बात को थोड़ा और समझते है अगर आजकल कोई लड़की खुली विचाधारा की है, सबसे हसीं खुशी बात करती है तो उसे चरित्र प्रमाण पत्र देने वाले खूब मिल जाएंगे।

                       हम आप बुरे नहीं है बुरे वो समाज के ठेकेदार जिन्हें अपनी बहु बेटियों का घुंघट तो प्यारा है, पर साथ ही अपने कार्यक्रम में लड़कियों से नाच करवा कर वो अपनी शान समझते है। ये फायदे के सगे है कब आपको धर्म,जात आपकी इज्ज़त का हवाला देकर अपना काम निकलवा लेंगे और आपको पता भी नहीं चलेगा। जिस दिन आप अपने अंदर से ये संकोच का भाव निकाल दोगे के समाज क्या सोचेगा, बस उसी दिन से जीवन में आधी दिक्कतें खत्म। 

                     हम कमज़ोर नहीं है हमारी मानसिकता कमज़ोर है, जो कभी हमें धर्म तो कभी जात के तराज़ू में बिठा देती है। पढ़ने में शायद अच्छा ना लगे पर ये घर से ही शुरू होता है, आपको पहले ही समझा दिया जाता है आपके दायरे क्या है।हमारे बड़ों कि ये समस्या है पहले वो हमे अच्छा पढ़ा लिखा देखना चाहते है, फिर हम अपनी पढ़ी लिखी विचारधारा को उनके सामने रखते है जिसमें कोई भेदभाव नहीं है तब वो हमें कहते है जायदा ही पढ़ लिख गया है जो हमें सीखा रहा है। 

:- मनीष पुंडीर 

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