Friday, March 9, 2018

Parmotion of life

#तरक्की
कभी सोचता हूँ अकेले मैं बैठे कभी के क्या जिंदगी में तूने कमाया है,
जवाब एक ही मिलता है थोड़ा पाने के लिए तूने बहुत कुछ गवाया है।

न सुकून मिला न खुशि पर फ़िक्र ने उम्र भर साथ निभाया है,
किसे सुनाये अपनी हमने तो दूसरों की हस्सी के लिए खुद को सताया है।

न आंसू बचे न मुस्कान रही होंटो पर वक़्त किसका हुवा,
बड़ी देर लगी समझने में के गया समय कभी लौट के नहीं आया है।

कुछ चन्द पैसों के लिए मैंने कई अनमोल लम्हें खोये है,
सबकों हस्सी देकर अक्सर हम अकेले में खूब रोये है।

आगे बढ़ने के लिए असली खुद को कही दूर पीछे छोड़ आया हूँ,
अब तो दिखावे की दुनीया है जो पसंद है वहीँ लाया हूँ।

सबको वो सुनाया जो वो सुनना चाहते रहे,
अक्सर कुछ अपनों के लिए हम कुछ अपने गवाते रहे।

तरक्की इतनी हुई के अब अपने अंदर के बच्चे को मारके हम बड़े हो गए, 
मासूमियत का गाला दबा के चालाकी संग दोस्ती करके अपने पैरों पर खड़े हो गए।

:= मनीष पुंडीर

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